________________
समूटमापानुवाद जिन भगवानका निर्मल शासन भी कलङ्कित किया। परंतु मुखाभिलापी बुद्धिमानोको इस लुकामतमें प्रमाद नहीं करना चाहिये अर्थात् इसे ग्रहण नहीं करना चाहिये। किन्तु उन्हें अपनाही मत ग्रहण करना उचित है। क्योंकि कर्दमसे (कीचडस) लिप्त महामणिको कीन ग्रहण नहीं करता है ? किन्तु सभी करते हैं । अरे! निःशक्त (जत तथा सम्यक्त्व रहित) पुरुषों के दोषसे क्या धर्म भी कभी मलीन हो सकता है ? किन्तु नहीं हो सकता।सो ठीक है-मंढकके मरनेसे समुद्र कहीं दुर्गधित नहीं होता । इसी तरह सब मतोंमें सार देखकर सम्यग्दृष्टि पुरुषोंको अपनी बुद्धि सर्वज्ञ भगवानके दिखाये हुये मार्गमें लगानी चाहिये ॥६२-६६|| ___ अब उपसंहार करते हुये आचार्य कहते हैं कि जो वस्त्र रहित होकर भी सुन्दर है, अलङ्कारादि विहीन होकर भी देदीप्यमान है तथा जो क्षुधा तृपादि अठारह दोषोंसे रहित है वही तो वास्तव में देव कहलाने योग्य
महमा मितीय पाहायलम: नाममागोमा RETREETTE
Hain प्रमापति REE Kiv ARE MARK पूति एमना मन्तिः मिदमोEिERICA 16
gisपो मानि परिमATE SAME TARA सदर्शनाः नि म firistia | RATE निरागरसभामा पनि मामा मामी: शुभारमा taar