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भावाहु-परिन- .. ___ सम्यग्दर्शन जिसका मूल कहा जाता है, जो श्रुत सलिलसे अभिसिंचित किया गया है, उत्तम चारित्रका, अहण जिसकी शाखायें मानी जाती हैं, जो सुन्दर २ गुणोंसे विराजित है और जिसमें इच्छानुसार फल प्रदान करनेकी अचिन्त्य प्रभुत्वता है तो फिर आप लोग उसी धर्म रूप मन्दारतरुका क्यों न आश्रय करें ?
ग्रन्थकर्ताका परिचय - जो प्रतिवादी रूप गजराजके मदका प्रमर्दन करनेके लिये केशरीकी उपमासे विराजित हैं, जिन्हें शीलपीयूषका जलधि कहते हैं और जिसने उज्वल कीर्चिसुन्दरीका आलिङ्गन किया है उन्हीं अनन्त कीर्ति आचायके विनय और अपने शिक्षा गुरु श्रीललितकी. मुनिराजका ध्यान करके मैने इस निर्दोष चरित्रका सङ्कनल किया है।
सदधिमूलं भूततायसिकं सुवृत्तवास प्राणोद्गुणाव्यम् ।। बर्व सदाऽमोटफलप्रदाने भो धर्मदेवडममायन्यन्तु ॥ पादीमेन्द्रमाप्रमईनहरे, शीलामृताम्मोनिषः ।
शिष्य श्रीमदनन्तकोलिंगणिनः सस्कार्तिकान्तानुषः । स्मृता श्रीललितादिकीर्तिमुनिपं शिक्षापूर सद्गुर्ण
चके वारुचरित्रमेतदनपं प्लादिनन्दी मुनिः ॥१५॥
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