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- अनुवादकका परिचय. . श्रीवेश्यवंश-अवतंस ! जिनेन्द्रभक्त ! 'शान्तस्वभाव ! सब दोष-कलङ्क-मुक्त। हीराविचन्द शुभ नाम विराजमान !
हे पूज्यपाद ! तुव पाद. करौं प्रणाम ॥१॥ हा तात ! पापविधिका नहिं है ठिकाना . जो आपके अब सुदर्शनका न होना।
हा ! मन्दभाग्य मुझको दुखमें दुबोके ___ मो भी हुई सुपथगामिनि आपहीके ॥२॥ . आधार तात ! अब है नहिं कोई मेरा
हा ! और संसृति-निवास बचा धनेरा । कैसे दुखी उदय जीवन पूर्ण होगा? हा! कर्मके उदयको किसने न भोगा? ॥श
. जिनेन्द्रसे प्रार्थना हे देव ! देख जगमें अवलम्ब हीन : '.
आलम्ब देकर करौ अध-कर्म हीन । संसार-नीरनिधि, अब छोड़ दोगे .'
तो दासका कठिन शाप विभो ! लहोगे ॥४॥ १-मा, जननी और लक्ष्मी इन दोनौका बाचक है । हमारी माताका लक्ष्मी था।
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