Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 125
________________ समूलमाषानुवाद यदि परमार्थसे देखाजाय तो मुझ सरीखे मन्द बुद्रियोंके लिये भद्रबाहु सरीखे महात्माओंका वृत्तान्त लिखना बहुतही कठिन था तोमी श्रीहीरकमवाल ब्रह्मचारीके अनुरोधसे थोड़ेमें लिखा ही गया । यह मेरा सौभाग्य है। __ मैंने जो यह चरित्र लिखा है वह केवल इसी लिये कि वेताम्बर लोग वास्तविक स्वरूप समझ जाय। आप लोग यह कभी खयाल न करें कि मैंने अपने पाण्डिसकं अभिमानसे इसे बनाया हो । इति श्रीरवकीर्ति आचार्य निर्मित श्रीभद्रबाहु चरित्र अभिनव हिन्दीमापानुवादमें पताम्बरमती उत्पत्ति _तया आपलीसहकी उत्पत्तिके वर्णन वाला चतुर्य अधिकार समाम हुआ था मददीबरित यपपिया कपम् । तपाप्पा लोकाinrne turn সুনীলমবি সনা। परवमिम न निगम::l इति श्रीधानमन्यायाविरचित मद्रमाहुरिने पताम्यरमनपाया. पलीसंघोत्पतिवणना नाम पतुधिER: HRIRECH समाis su

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