Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 119
________________ समूलभापानुपा गया और अत्यन्त भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अपने नगरमें उन्हें लिया लाया ॥ ४९-५२ ॥ उस समय राजादिके द्वारा सत्कार किये हुये तथा पूजे हुये वे साधुलोग दिगम्बरका व धारणकर श्वेताम्बर मतके अनुसार आचरण करने लगे ॥५३-५६॥ गुरुपदेशके बिना नटके समान उपहासका कारण लिङ्ग धारण किया। और फिर कितने दिनों बाद इन्हीं कुमा. गियोंसे यापनीय सङ्घ निकला। फिर इसी मिथ्यात्व मोहसे मलीन श्वेताम्बर मतमे शुभ कार्यसे पराङ्मुख कितनेही मत प्रचलित होगये। उनमें कितनेतो अहंकारके वशसे; कितने अपने आप आचरण धारण करनेसे, कितने अपने र आश्रयके भेदसे तथा कितने खोटे कर्मके उदयसे निकले । इसी तरह अनेक मतोंका समाविर्भाव होगया । औरभी सुनो॥ १५॥ विशतिलसो गापामगुन मात्रमा | RAITTER. पानमानगत् ११५ मागिन मापामा माeart finis समाना गिनाममाम् ॥ १५१ || Raineri PrazTRETERI को मापनमभूगर कापनाम I T NAET शुभारगा। मश E TARINEER THE REMENT किमिसन vिeirrirment NEमा सानु TIMIRAL

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