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भद्रबाहु-चरित्रतथा जिस देशमें प्रसूति गृहमें अरिष्ट शब्द का व्यवहार होता था, प्रतारण पना जम्बुक (श्याल) में था, बन्धन हाथियोंमें था, पल्लवोंमें छेदन होता था, भङ्गपना जलतरंगमें था, चपलता बन्दरोंमें थी, चक्रवाक रात्रिमें सशोक होता था, मद विशिष्ट हाथी था तथा कुटिलता स्त्रियोंकी भूवल्लरियोंमें थी। इन बातोंको छोड़ कर प्रजामें न कोई अरिष्ट (बुरा करने वाला ) था, न ठगने वाला था, न किसी का बन्धन होता था, न किसीका छेदन होता था, न किसीका नाश होता था, न किसीमें चपलता थी, न किसीको किसी तरह का शोक था, न कोई अभिमानी था तथान किसी में कुटिलता थी। भावार्थ-पुण्डूवर्द्धनदेशकी प्रजा सर्व तरहआनन्दित थी उसमें किसी प्रकार का उपद्रव न था ||२८-२९॥
जिस पुण्डूवईन देशमें खर्गके खण्ड समान अत्यन्त मनोहर कोट्टपुर नाम नगर अट्टाल सहित बडे २ ऊँचे गोपुरद्वार खातिका तथा प्राकार से सुशोभित है ॥३०॥
प्रसूतियेहेअरिधाख्या जम्बुके वञ्चकम्वनिः । बंधो गलै छदे छेदो पत्र मारत रखके ॥ १८ ॥ चापल्यं तु कमी नवं कोक शोको मदो द्विपे । क्राठिस्य बीधयोर्म स्मात्ततोऽसौनिरुपद्रवः ॥ २९॥
युग्मम्. तत्र कोहपुरं रम्यं धोततेनाकखण्डवत् । अगापोतुसाचलः सातिकापालगो पुरैः ॥ ३० ॥ प्रोतुंगशिखरा यत्राबः प्रासादपंशयः । फलईश वियोलॉप