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भद्रबाहु-परित्रथे। अधिक क्या कहें; कोटपुर नगर निवासी सब लोग धर्म-प्रवृतिमें सदैव तत्पर रहते थे ॥ ३५-३६ ॥ उस पुड्वर्द्धनका-जिसने अपने तेजसे ससस्त राजा लोगों को वश कर लिये हैं, सन्तानके समान प्रजाको देखने वाला, राजा लोगोंके योग्य तीन शक्तिसे मंडित, काम क्रोध लोभ मोह मद प्रभृति छह अन्तरङ्ग शत्रुओंको जीतने वाला तथा उत्तम मार्गमें सदैव प्रयत्नशील पद्मघर नाम राजा था ॥ ३७-३८ ॥ उसके-दूसरी लक्ष्मीकी समान पद्मश्री नाम महिषी थी । तथा सोमशर्म पुरोहित था ॥ ३९ ॥ वह पुरोहित विचारशील, विशुद्ध हृदय तथा वेदविद्याका ज्ञाता था और द्विज राज (ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ) होकर भी द्विजराज (चन्द्र अथवा गरुड) न था। क्योंकि द्विज नाम नक्षत्रोंका है और नक्षत्रों का राजा चन्द्र होता है,अथवा द्विजनामपक्षियोंका है और उनका राजा गरुड़ होता है। परन्तु यह दोनों न होकर ब्राह्मणोंमें उत्तम था। क्योंकि
येषां मुयात्रादौ श्रुतियेपा विनोदिते ॥ ३५ ॥ स्तुतिपां गुणिवर नतियों जिनक्रमे । तत्रत्यास्तेऽखिला लोका रेबिरे धनवर्तनात् ॥ ३॥ तत्रचामायते भूपः ख्यातः माघसमिधः । करदीवनिः शेयभूपालो निजतेजसा ॥ ३५ ॥ स्वप्रमावसबालोको शचित्रविराजितः । जितान्तरारिषदों यः सन्माने समुशनी ॥३८॥ बभूव तन्महादेवी पन्नश्रीः श्रीरिवापरा । पुरोधा सोमशाह आसीसस्य महीक्षितः ॥ ३९ ॥ विवेकी विशदत्वान्तो वेदविद्याविशारदान चन्द्रो दिन.