Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 116
________________ ८६ भद्रबाहु चरित्र बचनोंसे शास्त्रोंकी कल्पना करते हैं और विचारे मूर्ख लोगों को संशय में डालते हैं । इसके कुछ दिनों बाद यही मत सांशयिक कहलाने लगा । इसीप्रकार अपने कपोल कल्पित मार्गर्मे ये दुराग्रही लोग रहते हैं ॥२५-३४॥ इन्हींके भक्त जो लोकपाल तथा चित्रलेखा रानी थी । उनके सुवर्णकी तरह कान्तिकी धारक तथा अपने सुन्दर रूपसे देवाङ्गनाओं को भी जीतने वाली मनोहर लक्षणोंसे शोभित नूकुलदेवी नामकी बाला हुई । सो उसने उन गुरुओंके समीप अनेक शास्त्र पढ़े | और फिर क्रम २ से युवा लोगोंको अत्यन्त प्रिय मनोहर तरुण अवस्थाको प्राप्त हुई । : धनसे परिपूर्ण एक करहाटाक्ष नामका नगर है। अनिवार्य पराक्रमका धारक भूपाल नामका उसका राजा है। उसने उस सुन्दर शरीरकी धारक नूकुलदेवीके साथ अपना विवाह किया । नृकुलदेवी भी पूर्व पुण्य कर्मके उदयसे और सर्व रानियों में प्रधान पट्टरानी हुई ॥ १३३ ॥ ततः सांशयिकं नातं मतं धवलवाससाम् । एवं स्वकल्पिते मार्गे वर्तन्ते ते दुराशयाः ॥ १३४ ॥ तद्भकलोकपालाख्यमहीक्षिचित्रलेजयोः सुता नकुलदेव्याख्या बसून भरलक्षणा ॥ १३५ ॥ अध्येष्टाऽनेकशास्त्राणि सनीडे स्वगुरांस्तु सा । कळाकुलकनत्कान्ती रूपापास्तराना ॥ १३६ ॥ अवाप तारखाग्यं सारथ्योस्तनृप्रियम् । अथास्ति करहाटाक्षं गं द्रविणसंसृतम् ॥ १३७ ॥ तच्छास्ताऽशर्य पर्योऽभूद्र भूपो भूपालनाम भाकू । कन्यां तां कमनीयाङ्गीं प्रमोदात्परिणीतवान् ॥ १३८ ॥

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