Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 115
________________ समुलमापानुबाद तो तुम्हीं कहो फिर तीर्थकरोमें तथा और सामान्य मनुष्यों में विशेषताही क्या रही ? दूसरे यह भी है कि जब हिजके यहांसे गर्भ हरण किया गया तो उसकी नालका तो छेद वहीं पर होगया फिर छिन्ननाल गर्भ दूसरी जगहँ क्योंकर बढ़ सकता है ? जैसे जिस फलका बंधन एक जगहँ छिन्न होजाता है फिर वह दूसरी जगह नहीं बढ़ सकता । किन्तु उसी समय नष्ट होजाता है। कदाचित कहो कि जैसे ही दूसरी जगहँ भी रोपी हुई वृद्धिको प्राप्त होती है तो गर्म क्योंकर नहिं बढ़ सकता १ परन्तु यह कहना भी ठीक नहि है क्योंकि लता तो माता के समान होती है और सुत फलके समान होता है । कदाचित फिर . भी कहो कि माताके सम्बन्धसे गर्भ दूसरी जगह रख दिया गया तो गर्मका क्या बिगड़ा १ बिगड़ा तो कुछ नहिं परन्तु यही दुःख होता है कि तुम्हारे सदोप वचन विचारे सत्पुरुषोंको संताप उत्पन्न करते हैं । इसी तरहसे श्वेताम्बरी लोग नाना प्रकार के मिध्या मेद्रियः परम संयो१२९ ॥ सा f बदनाम ॥१३ 1 . नकिता मातृतः १११५ र १३५ ॥ नियमनम् ॥ बहु एवं बहुविविः संनयम ना

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