Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 89
________________ समूल भाषानुवाद ८९ > गुरुके पास आया और वह आश्चर्य जनक समाचार उयों का त्यों कह सुनाया। विशाखाचार्य भी इस वृत्तान्तको सुनकर मनमें विचारने लगे । अहो ! यह चन्द्रगुप्ति सुनि शुद्ध चारित्रका धारक है। मैं तो निश्चयसे यही समझता हूं कि - इसीके पुण्यप्रताप देवता लोगोंने यह नगर रचा था। इस प्रकार शुद्ध चारित्रके धारक चन्द्रगुतिमुनि की प्रशंसा कर उन्हें वहांका सव उदन्त कह सुनाया । और फिर प्रति वन्दना कर कहा कि देवता लोगों के द्वारा कल्पना किया हुआ आहार साधुओं को लेना उचित नहीं है । इसलिये सच को प्रायश्चित लेना चाहिये । विशाखाचार्यके कहे अनुसार चन्द्रराप्ति मुनिराजने प्रायश्रित लिया। और उसी समय सारे संघने भी स्वामी से प्रायश्चित लिया। इसकेबाद- पापरूपी मेघोंक. नाश करनेके लिये वायुके समान, उत्तम २ चरित्रके धारक माधुओंम प्रवान, सूर्यके समान तेजस्वी तथा विशुद्ध ज्ञानके अद्वितीय ---- 13 AN Fre ॥९९॥ रघु तदनं निशम्यात चिन्तयामान् ॥ ९ ॥ गुहामुनिः । तयग्नो नूनं श्रस्याप्राशदादादम् म योग्य तीन म नम् ॥ ९६ ॥ स्वामी कन्यकुब्ज गमाव९ ॥ अपमननयमानः रा ॥९६

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