Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

View full book text
Previous | Next

Page 98
________________ ६८ भद्रयाहु-चरित्रगुणोंका धारक, रूपशौभाग्य लावण्यादिसे युक्त तथा ज्ञान विज्ञानका जानने वाला लोकपाल नामका पुत्र था ॥ ३३-३८ ॥ प्रजापालने-अपने पुत्रके लिये गुणों से उज्वल. चन्द्रकीर्तिकी-नव यौवनवती चन्द्रलेखा पुत्री के लिये प्रार्थना की । लोकपालभी चन्द्रलेखाके साथ विवाह करके उसके साथ नाना प्रकारके उपभोगोंको भोगने लगा। जैसे शचीके साथ इन्द्र अनेक प्रकारके भोगोंको भोगता रहता है । पश्चात् धीरे २ शुभोदयसे अपने पिताके विशाल राज्यको पाकर चन्द्रलेखाको अपनी पट्टरानी बनाई। और फिर समस्त राजा लोगोंको अपने शासनकी आधीनतामें रखकर रानीके साथ उपभोग करता हुआ राज्यका निर्भय पालन करने किसी समय जब चन्दलेखाने स्वामीको प्रसन्नचित्त गिरा रानी तस्यासीवादलक्षणा ॥ ३४ ॥ लोकपालामियस्तोकनयायागुणाई भवत् । रूपसौमाम्यम्पनो ज्ञानविज्ञानपारगः ॥ ३८॥ प्रजापाला खपुत्रार्थ चन्द्रकीर्तिपात्मनाम् । प्रमोदात्प्रार्थनायामासचन्द्रलेखांणोज्वलाम् ॥ ३॥ उपयम्य कुमारोऽसौ तो कन्या नवयौवनाम् । योमुजाति तया भोगान् शच्या षा सुरनायकः ॥४०॥ क्रमासंप्राप्य पुण्यन प्राज्यं राज्यं पितदा । चकार चन्द्रलेखां तां सदप्रमहियोपदे ॥ १ लोकपालो नृपः सार्थ कुर्वनामात्मनो मृशम् । विध. विशदं राज्यं नताशेषमहीपतिः ॥ ४२ ॥ एकदाऽनन्दवितासी रामया विज्ञापितो

Loading...

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129