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भद्रबाहु चरित्र
भी अत्यन्त निन्दनीय हीनता ठहरेगी। उनके आहार की भी कल्पना केवल वेदनीय कर्मके सद्भाव होनेसे मानी जाती है ॥७२-७८॥ ___ अरे! मांस रक्त आदि अपवित्र वस्तुओंको देखते हुये भी यदि केवली भगवान आहार करें तो फिर तो यों कहिये कि जिन भगवानने अपने सर्वज्ञपनेको जलाञ्जलि दे दी। तौभी केवली भगवान कवला आहार करते हैं ऐसा जो लोग कहते हैं समझिये कि वे निर्लज्ज हैं खोटे मतरूपी मदिराके मदमें चकनाचूर हो रहे हैं ॥७९-८२॥ इस प्रकार केवली भगवानके कवला आहारका प्रतिषेध किया गया। उसी तरह जो लोग स्त्रियोंको उसी भवमें मोक्ष प्राप्त होना कहते हैं समझिये कि वे लोग दुराग्रह रूप पिशाचके वशवर्ति हैं । अथवा यो कहिये कि वे विक्षिप्त होगये हैं। यदि स्त्रिये अत्यन्त घोर तपधरण भी करें तौमी उस जन्ममें उन्हें मोक्ष नहीं हो सकता ॥ ८३-८४॥ किम् ॥ ७९ ॥ अविनाश्तरायाणां पुरते यदि मोचनम् । श्रादेभ्योऽध्यातिहीनत्वमाझ्याताई गहितम् ॥ ८० ॥ विलोक्य मौसरकादीनान्तरायान्करोति च। तदा सशभावस्य तेन प्रत्तो जलाबलिः केवलो कवलाहार करोतीति वदन्ति ये । समापि ते न लबान्ते दुर्मसातवमोहिताः ॥ २॥
॥ति केचालिमुकिनिराकरणम् ।। अथ तस्मिन्मवे श्रीणां मोक्ष ये निगदन्ति ते दुराग्रहमास्ता बनाः किं वातिवानुवाः ॥ ३ ॥ तपोजीप दुदर घोरं करते बदि योषितः । तथापि तद्भवें
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