Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 100
________________ ७४ । भद्रबाहु-चरित्रअहो ! लोकमें अपनी विटम्वना करने वाला तथा निन्दनीय यह कोनमतप्रचलित हुआ है। नग्र होकरभी । वस्त्रयुक्त तो कोई साधु नहिं देखे जाते हैं । इसलिये इनके पास जाना योग्य नहीं है। ऐसे नूतन मतका आविष्कार देखकर राजा शीघही उस स्थानसे लौटकर अपने मकान पर आगया। तब रानीने राजाके हृदयका भाव समझ कर गुरुओंकी भक्तिसे उनके लिये वस्त्र भेजे । साधुओंने भी उसके कहनेसे वस्त्रोंको ग्रहण किये। उसके बाद-राजाने उन साधुओंकी भक्तिपूर्वक पूजनकी तथा सन्मान किया । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह बात ठीक है कि-स्त्रियोके रागमें मनुरक्त हुये पुरुष क्या २ अकार्य नहिं करते हैं ? उसी दिनसे श्वेतवस्त्र के ग्रहण करनेसे अर्द्धफाल कमतसे श्वेताम्बर मत प्रसिद्ध हुआ । यह मत महाराज विक्रम नृपतिके मृत्युकालके १३६ वर्षके बाद लोकमें सचिन्तयत् । किमतादर्शन निन्य साकेत्र खविडम्बकम् ॥ ४५ ॥ नमा वरेण संबीता नेक्ष्यन्ते यत्र साधवः । गन्तुं न युज्यते नोच ननदर्शनदर्शनात् ॥ ५० ॥ म्याधुव्य भूपतिस्तस्मानिजमन्दिरमेयिवान् । शात्वा राशी नरेन्द्रस्य मानसं सहसा स्फुटम् ॥ ५५ ॥ गुरूणां गुरुभक्त्या सा प्राहिणोत्सिंचयोधयम् । तेहीतानि वासासि सुदा तानि वचितः ॥ ५२ ॥ ततस्ते भूमृता भक्त्या पूजिता मानिता भृशम् । किमकार्यन कुन्ति रामारागण रजिताः ॥ १३ ॥ धूतानि चेतवासांसि सदिनासमजायत । श्वेताम्बरमत ख्यात तताईफालकमतात ॥ ५५ ॥ मते विक्रमभूपाळे पनिशदधिक पाते । यतेऽन्दानाममूहोके मत वेताम्बराभिधम् ॥ ५५ ॥ भुनकि

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