Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 101
________________ समूलमायानुवाद प्रादुर्भूत हुआ है । फिर उस मूल जिनचन्द्रने-जिन प्रतिपादित आगमसमूहका केवली मंगवान कवलाहार करते हैं, त्रियोंको तथा संतगमुनि लोगोंको उनी भवमें मोक्ष होता है और महावीर स्वामी गर्भका अपहरण होना इत्यादि प्रतिकूल रीतिमे वर्णन किया ॥ ४३ ॥ ५७ ॥ परन्तु यह कथन प्रत्यक्ष बाधित है इसेही सिद्ध करते हैं। जिले अनन्त मुख है उनके आहारकी कल्पनाका संभव मानना ठीक नहि है। यदि कहोगे कि केवलीके कवला आहार है तो टमकं अनन्त सुखका व्याघात होगा। क्योंकि आहार तो क्षुधाके लगने पर ही किया जाता है और केवली भगवानके तो क्षुधाका अभाव रहता है । क्षुधाके अभाव में आहारकी भी कोई आवश्यक्ता नहिं दीखती। यह है भी तो ठीकजैसे मूलका नाश होजान पर वृक्ष किमौतरह नहीं बढ़ सकता। उसी तरह क्षुधाका अभाव होजानस आहार करना भी नहि माना जासकता । यदि फिरभी आहारको कल्पना की जाय तो जिन भगवानके शरीर में सदापता आती है ।। ५८ ॥५॥ केपटानी श्रीमो मानि रदयामाग ग rierarun गागमसन्दाह तिरिदिनन् । माननी ॥ ५५ ॥ अनन्तसल्ला प EERE: व्यापातोऽनन्नागम् ॥ THE TERMeet इंडिताः मनग्नता : Erri

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