Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ भद्रबाहु-चरित्रतथा नमस्कार की जाती हैं और उनमें क्षपण (मुनि) की इसीकी कल्पना होनेसे "खमणादिहडी" व्रत भी उसी दिनसे चलपड़ा है । इसके बाद उसकी शान्तिके ही. लिये आठ अंगुल लम्बी तथा चार अंगुल चौड़ी एक लकड़की पट्टी बनाकर यह वही गुरु हैं ऐसी कल्पना कर उसे पूजने लगे । इस प्रकार यथायोग्य उसकी स्थापना करके भयभीत अर्द्धफालक लोगोंने जब पूजना आरम्भ किया तब उसने उपद्रव करना बन्द किया । फिर धीरे २ इसी तरह पुजाता हुआवह देव पर्युपासन नामक कुलदेवता कहलाने लगा। सो आजमी जलगन्धादि द्रव्योंसे पूजा जाता है। वही आश्चर्य जनक भईफालक मत कलियुगका बल पाकर आज. सब लोगोंमें फैल गया । जैसे जलमें तैलकी बिन्दु फैल जाती है ॥ २२-३०॥ यह अईफालक दर्शन जिन भगवानके वास्तविक सूत्रकी विपरीत कल्पना करके विचारे मूर्खलोगोंको - णादिष्डीसाख्यं क्षपणास्थिप्रकल्पनात् ॥३९॥ तथा वान्तये काएपहिवाश्यालामता। पतुरमा स एषयमिति संकल्प्य पूषिता ॥ २५ ॥ यथाविधि परिस्थाप्य पूजितः सो फालक । परियकं ततस्तेन वेष्टित विकियामयम् ॥२०॥ पर्युपासनमामा कुलदेवोऽभवत्ततः । नक्सा महीयतेऽद्यापि चारिगन्धाक्षतादिकैः ॥२९॥ मसोईफलक बोके न्यानसे मतमतम् । कलिकालबलं प्राप्य सलिले तेल निन्दुपत् ॥३०॥ भोमानिनेन्द्रधनस्य सूत्र संकल्पतेऽन्यथा । वर्तयन्ति स दुर्मार्ग बना

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129