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भद्रबाहु चरित्र
तब वे क्रोधी मुनि बोले- यह बुड्ढा है क्या जानता है जो ऐसा विना विचारे बोलरहा है। अथवा यों कहिये कि वृद्धावस्था में बुद्धि के भ्रम से विक्षिप्त होगया है । और जबतक यह जीता रहेगा तबतक हमलोगों को सुख कहो ? ऐसा विचार कर पात्माओंने स्थूलाचार्य के मारने का संकल्प किया । और फिर अत्यन्त कुपित होकर उन दुष्ट तथा मूखौने निर्विचारसे विचारे 'स्थूलाचार्यको डंडों डण्डोंसे मारकर वहीं पर एक गहरे खड्डे में डाल दिया । नीतिकार कहते हैं कि यह ठीक है - खोटे शिष्यों को दी हुई उत्तम शिक्षा भी दुष्टोंके साथ मित्रताकी तरह दुःख देने वाली होती है ।
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उस समय स्थूलाचार्य आर्त्तध्यान से मरण कर व्यन्तर देव हुआ और अवधिज्ञानसे अपने पूर्वजन्मके वृचान्तको जानकर उन मुनि धर्माभिमानियोंके ऊपरजैसा उपद्रव पहले तुमने मेरे उपर किया था वैसा ही उपद्रव
म्युनापि हि ॥ १५ ॥ कुपितास्ते तदा प्रोचुर्वर्षीयानेष वैत्ति किम् । वची वातुलीभूतो वार्धिक्ये वा मतिभ्रमात् ॥ १६ ॥ वृद्धोऽयं यावदत्रास्ति तावत्रो न सुख• स्थितिः । इति सचिन्ा ते पापास्तं हन्तुं मतिमादधुः ॥ १७॥ दुखण्डः शिष्यैम.
देर्दण्डेो हठात् । जीणांचायस्ततो क्षिप्तो गर्ने कूटन तत्र तैः ॥ १८ ॥ कुशिष्याणां हि शिक्षाऽपि खलमैत्रीव दुःखदा । सुत्वाऽऽध्यानतः सोऽपि व्यन्तरः • समजायत || १९ || विदित्वाऽधिबोधेन देवोऽसौ पूर्वसंभवम् । चकार सुनिमन्या