________________
१४
भद्रबाहु चरित्र ।
पुरके समीप आते हुये दिगम्बर साधु-समूहको देखकर खेलते हुये वे सब बालक भयसे भाग गये ॥ ५८ ॥ उनमें केवल बुद्धिमान, शुद्धात्मा, विचारशील तथा सन्तोषी भद्रबाहु कुमारही वहां पर ठहरा ॥ ५९ ॥ गोवर्द्धनाचार्यने - एकके ऊपर एक गोली इसीतरह ऊपर १ चतुर्दश गोली चढाते हुये उसे देखकर अपने अन्तरङ्गमें विचार किया कि - पञ्चमश्रुतकेवली निमित्त से जाना जायगा ऐसा केवलज्ञानी श्रीवीर भगवानने कहा है सो वह महातपस्वी, महातेजस्वी, ज्ञानरूपी समुद्रका पारगामी तथा भव्य रूप कमलोंको प्रफुल्लित करनेके लिये सूर्य की समान भद्रबाहु होगा ||६|||६२|| सो निमित लक्षणोंसे तो यह उत्पन्न हो गया ऐसा जाना जाता है। इसप्रकार हृदयमें विचार कर कुमारसे गोवर्धनाचार्य ने कहा- दशनश्रेणी रूप चाँदनीके प्रकाश से समस्त दिशाओंको उज्वल करने वाले हे कुमार ! हे महाभाग्यशालि ! यह तो कह कि तेरा नाम क्या है ? तूं तत्पुराऽभ्वर्गमायातं वीक्ष्य दिग्वाससां ग्रजम् । अपीपलन्कुमारास्ते क्रीडन्त खस्तचेतसः ॥ ५८ ॥ तेषां मध्ये सुधीरेको भद्रवाहुकुमारकः तस्थिवांस्तत्र शुद्धा त्मा विमेकी इष्टमानसः ॥ ५९ ॥ तं कुमारं विलोक्यालां गांवदनगणाधिपः । उपर्युपरि कुर्वाणं कांस्तचतुर्दश ॥ ६० ॥ खखान्ते चिन्तयामास निमितश श्रुतान्तगः । इत्युकं वीरदेवेन पुरा केवलचक्षुषा ॥ ६१ ॥ महातपा महातेज बोधाम्मोनिधिपारगः। भब्बाम्बोरुचण्डांशुर्मद्रबाहुर्मविष्यति ॥ ६१ ॥ निमित्तै क्षणैः सोऽयं समुत्पन्नावबुध्यते । इति निखिल योगीन्द्रः कुमारं तं वचोऽदत् ॥१३२॥