Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 46
________________ १६ भद्रबाहुबरित्र। आज आपके चरण-सरोजके दर्शनसे मैं सनाथ हुआ । तथा आपके पधारनेसे मेरा गृह पवित्र हुआ । विभो! मुझदासके ऊपर कृपाकर किसी योग्य कार्यसे अनुग्रहीत करिये। बाद मुनिराज मधुर बचनसे. बोले-भद्र ! यह तुम्हारा पुत्र भद्रबाहुमहामाग्यशाली तथा समस्त विद्याका जानने वाला होगा। इसलिये इसे पढ़ानेके लिये हमे देदो । मैं बड़े आदरसे इसे सब शास्त्रबहुत जल्दी पदाऊंगा । मुनिगजके वचन सुनकर कान्ता. सहित सोमशर्म बहुत प्रसन्न हुआ। फिर दोनों हाथ जोड़ कर बोला-प्रभो ! यह आपहीका पुत्र है इसमें मुझे आप क्या पूछते हैं। अनुग्रह कर इसे आप लेजाईये और सब शास्त्र पढ़ाईये । सोमशर्मके कहनेसे-भद्रबाहुको अपने स्थान पर लिवालेजाकर योगिराजने उसे व्याकरण,साहित्य तथा न्याय प्रभृति सब शास्त्र पढ़ाये । यद्यपि भद्रबाहु व्याच विहिताबाली ॥ ४० ॥ सनायो नाय ! बातोऽय त्वत्पादाम्भोजवीक्षणार । माम समभदव पूर्व गेहं त्वदागतेः ॥ ॥ विमो [ मयि कृपां कृत्वा कलं किचिनिरुप्यताम् । व्याजहार ततो योगी गिरा प्रस्पमिया ॥ ४२ ॥ भवदीया त्मनो भद! मद्रयासमायः । मविवाध्य महामाग्यो विश्वविद्याविशारदः ४६ ततो मे दीवतामेषो स्थापनाय महादरात् । शास्त्राणि सकलान्येनं पाठयामि यथाऽबिरात ! ॥ गुरुव्याहारमावण्यं चमाण सप्रियो द्विनः। महानन्दधुमापो मुलीशस सल्करी ॥ ५ ॥ यौसाकोऽयं सुतो देव ! किमन परिपच्च्यते । पाठयन्तु कृपां कुत्ला शाखापनमनेकशः ॥ ॥ इति तद्वाक्यतो नौवा कुमार स्थानमात्मनः बन्दसाहित्सवकोदिशामाण्यध्यापयशम् ॥ १. गुरूपदेशा

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