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तृतीय परिच्छेद।
श्रीभद्रबाहुम्लामी विहार करते हुये धीरे २ किसी गहन अटवीमें पहुँचे। और वहाँ बड़भारी आश्रयमें डालने वाली आकस्मिक आकाशवाणी सुनी । जब निमित्तज्ञानसे उसका फल विचारा ता उन्हें यह मालूम होगया कि अब हमारे जीवनका भाग बहुत ही थोड़ा है। उसी समय उन्होंने सब साधुसमूहको बुलाया और उनमें-श्रीविशाखाचार्यको गुणरूप विभवसे विराजित, दशपूर्वके जानने वाले तथा गंभीरता धर्यादि उत्तम र गुणों के आधार समझ कर उन्हें समस्त साधुसंघकी परिपालनाके लिये अपने पट्टपर नियोजित किये । और सब साधुओंसे सम्बोधन
तृतीयः परिच्छेदः ।
भयाऽमौ विदरबानी भद्रयाः नः जनः । प्रापन्माइया गयधार गगनवनिम् ॥ १॥ शुन्या महाभुतं निमितमानत: गु । आयुरन्पर. भारमीपनमामोहोचलोचनः ॥ * ॥ ना साधुः ममात्र तन गवानान्सुनान । विशाखाचायनाम या राशुषमापदाद पार गाभागुणवतम् । वागमःक्षा सपद पर्यायवद ॥ ४ मम मसर