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ममूलमापानुबाद। उन्हें नमस्कार किया तथा वनमें जोकुछ देखा था उसे ज्योका त्यों गुरूसे कह दिया । उससमय भद्रबाहुस्वामीने अपने शिष्यकी प्रशंसाकी तथा बोले-वत्स ! तुमने यह बहुत ही अच्छा किया। क्योंकि जब दाता प्रतिग्रहादि विधिसे आहार दे तभी हमलोगोंको लेना चाहिये।
दूसरे दिन फिर चन्द्रगुप्तिमुनि स्वामीको नमस्कार कर आहारके लिये दूमरे वृक्षोंम गये। परन्तु वहां उन्होंने केवल भोजन पात्र देखा । उसी वक्त वहांसे लौटकर गुरूके पास गये और प्रणाम कर बीते हुये वृतान्तकों कह सुनाया । गुरुनेभी प्रशंसा कर कहा-भव्य ! तुमने यह बहुत ही अच्छा किया क्योंकि-साधुओंको अपने आप दूसरोंका अन्न ग्रहण करना योग्य नहींहै ॥
इसी तरह तीसरे दिनभी गुरूके चरणपङ्कजोंको नमस्कार कर चन्द्रगुप्तिमुनि आहारके लिये गये । परन्तु उसदिन भी केवल एक स्त्रीको देखकर अपने आहारकी योग्यता न समझ कर शीघ्र ही लौट आये। गुरुके पास
यदृष्टं रान तत्स्य ममान गुरोः पुरः ॥ २२ ॥ मुरणा गिनः निमो माग विदिन बाम । प्रनिमहादधिना दस दामाद एन चन्द्रगान यति नत्यानाराव नागिन । जगामाया नमामि RTH गरया शुरबमा मरनाकमा परिक्षा नागाः म म त्वया पुनम् । ५ ॥ न गुभ परिनामनगाणगाना गन्द्रगतिरिसोयदि प्रवन्ध गुमनाम ॥ दादा REAR REM