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भद्रयाहु-चरित्र । जब श्रीभद्रबाहु साधुराज चले गये तब अवन्ती ( उज्जयिनी ) निवासी लोग स्वामीके चले जानके शोकसे परस्परमें कहने लगे कि----अहो ! वहीं तो देश भाग्यशाली है जिसमें सुन्दर चारित्रके धारक निग्रंथ साधु विहार करते रहते हैं, जो कमलिनियोंसे • शोभित होता है तथा जहां राजहंस शकुन्त रहते हैं। ऐसा जो पुराने कान्तिक (ज्योतिषी ) लोगोंने कहा है वह वास्तवमें बहुत ठीक है ॥ ९२ ॥ .. अहो ! धर्म ही एक ऐसी उत्तम वन्तु है जिससे.. जिन भगवानकी परिचर्याका सौभाग्य मिलता है निर्दोष गुरुओंकी सेवा करनेका सुअवसर मिलता है विशुद्ध वंशमें जन्म तथा ऐश्वर्य समुपलब्ध होता है। इसलिये धर्मका संचय करना समुचित है। इति श्रीरत्ननन्दि आचार्य विनिर्मित श्रीभद्रबाहु चरित्रकेआम नव हिन्दीमापानुवादमें सोलह स्वभोका फल तथा स्वामीके विहार वर्णन नाम द्वितीय अधिकार समाप्त हुआ॥२॥ यो विचरान्त चारुचरिता निन्धयोगीश्वराः ।
पभिन्योऽपि च राजहंसविहंगावयप माग्योदयः। इत्युकं हि पुरा निमित्तामखत्तप्यतामारिता
स्ववत्याः सुगुल्लयाणजशुचा प्रोमियते जनाः ॥ ११ ॥ धर्मतो जिनपतेः सुसपर्या धर्मतोऽनघगुरोः परिपया । धर्मतोमलकुलं विभवासिवोभवीति हि तत: स विधेयः ||३|| इति श्रीमद्रबाहुचरित्रे आचार्यश्रीरत्ननन्दिविरचिते घोडशस्वप्रफलगुरुबिहारवर्णनो नाम द्वितीयः
परिच्छेदः ॥२॥