Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 45
________________ ममूलभाषानुवाद । । किस कुल में समुत्पन्न हुआहै और किसका पुत्र है ! मुनि राजके उचम बचन सुनकर और उनके चरणोंको बारम्बार प्रणाम कर विनय पूर्वक कुमार बोला-विभो ! मेरा नाम भद्रबाहु है, द्विजवंशमें मैं समुत्पन्न हुआ हूं तथा सोमश्री जननी और सोमशर्म पुरोहित मेरे पिता हैं ॥६३॥६६॥फिर मुनिराज बोले-महाभाग ! हमें अपना घरतो, बताओ। मुनिराज के बचनसे-विनयसे विनम्र मस्तक और सन्तुष्ट चित्त भद्रबाहु, स्वामीको अपने गृह पर लेगया । भद्रबाहुके माता पिता महामुनिको आते हुये देखकर अत्यन्त प्रसन्नमुख हुये; और सानन्द उठे तथा मुनिराजको भक्ति पूर्वक नमस्कार कर उनके विराजनेके लिये मनोहर सिंहासन दिया । जिसप्रकार उदयाचल पर सूर्य ठहरता है उसीतरह मुनिराज भी सिंहासन पर बैठे । इसके बाद कान्ता सहित सोमशर्मने हाथ जोड़ कर कहा-दयासिन्धो ! दन्वातिचन्द्रिकायोतप्रयोतितदिगन्तः । मो फुमार | महाभाग ! किं नामा कि कुतस्त्वकम् ॥ १४॥ किं पुत्री बद वाक्यं मां निशम्यति चोवरम् । नाम नाम पुरोः पादी प्रोवाच प्रभयान्वितः ॥६॥ भद्रयारह नाना भगवन् ! द्विजवंशकः । सोमाधियां समुद्भुतः सोमरामपुरोधसः ॥ ॥ जगाद तं ततो योगी महामाग ! निदर्शय । तापकीयं निशान्त में धुत्तामा हसमानमः ॥ ६ ॥ अभीनयमिग गेहं विनयानतमस्तकः । तदीया पितरी बोल्यान्त ते महामनिम् ॥६॥ प्रफुल्वदनी क्षिप्रं मुदा समुदतियताम् । विधाय विनयं मपत्या प्रादायि धाविष्टरम् ॥ १९ ॥ उपावित्रन्मुनिस्तत्रोदवाही वा दिवाकरः । सजाति: गामार्मानो

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