Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 58
________________ भद्रबाहु चरित्र । विवेक विनय धनधान्यादि सम्पदाओंसे समस्तदेश को जीतने वाले अवन्ती नामक देशमें प्राकारसे युक्त (वेष्टित) तथा श्रीजिनमन्दिर, गृहस्थ मुनि उतम धर्मसे विभुषित उज्जयिनी नाम पुरी है ॥५॥६॥ उसमें - चन्द्रमाके समान निर्मल कीर्त्तिका धारक, चन्द्रमा के समान आनन्द का देनेवाला, सुन्दर २ गुणोंसे विराजमान, ज्ञान तथा कला कौशलमें सुचतुर, जिन पूजन करनेमें इन्द्र समान, चार प्रकार दान देनेमें समर्थ, तथा अपने प्रतापसे सूर्यको पराजित करने वाला चन्द्रगुप्ति नाम राजा था ||७||८|| उसके - चन्द्रमाँकी ज्योत्स्नाके समान प्रशंसनीय तथा रूप लावण्यादि गुणोंसे शोभायमान चन्द्रश्री नाम रानी थी ॥९॥ ૨૮ किसीसमय महाराज चन्द्रगुप्ति-सुखनिद्रामें बात पित्त कफादि रहित (नीरोग अवस्था में ) सोये हुये थे । उस समय रात्रि के पिछले पहर में - आचर्यजनक नीचे लिखे हुये सोलह खोटे स्वप्न देखे । वे ये हैं- कल्पवृक्ष की विवेकविनयानेकधनधान्यादिसम्पदा ॥ ५ ॥ अमादुवयिनी नाना पुरी प्रकारचेष्टिता । श्री जिनागारसागारमुनिसद्धर्ममण्डिता ॥६॥ चन्द्रावदातसत्कोसिंचन्द्रवन्मोदकर्तॄणाम् । चन्द्रगुप्तिर्नृपस्तत्राऽच चारुगुणोदयः ॥ ७ ॥ ज्ञानविज्ञानपारीणी जिनपूजापुरंदरः । चतुर्द्धा दानदक्षो यः प्रतापचितभास्करः ॥ ८ ॥ चन्द्रश्रीमांमिनी तस्य चन्द्रमः श्रीरिवापरा । संती मतलिका जाता रूपादिगुणशालिनी || ९ || एकदाइसौ विशांनायः अतः पुंन्द्रिया निशायाः पश्चिमे यामे वातपित्तकफातिगः ॥ १० ॥ इमान् 1

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