Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 63
________________ ममूलभाषानुयाद । ३३ भृतीका नृत्य देखा है उससे मालूम होता है कि मनुष्य नीचे दवोंमें अधिक श्रद्धाके धारक होंगे। (0) खद्योतका. उद्यात देखनस-जिन सूत्रके उपदेश करने वाले भी मनुष्य मिथ्यात्व करके युक्त होंगे और जिन धर्म भी कहीं २ रहंगा । (८) जल रहित तथा कहीं थोड़े जलसे भरे हुये सरोवरके देखनसेजहाँ तीर्थकर भगवानके कल्याणादि हुये हैं ऐसे तीर्थस्थानोंमें कामदेवके मदका छेदन करने वाला उत्तम जिनधर्म नाशको प्राप्त होगा । तथा कहीं दक्षिणादि देशमें कुछ रहेगा भी (९) सुवर्णके भाजनमें कुत्तेने जो खीर खाई है उससे मालूम होता है कि-लक्ष्मीका प्रायः नीच पुरुष उपभोग करेंगे और कुलीन पुरुषोंको दुप्पा. प्य होगी। (१०) ऊंचे हाथी पर बन्दर बैठा हुआ देखनेसे नीच कुलमें पैदा होने वाले लोग राज्य करेंगे क्षत्रिय लोग राज्य राहत होंगे। (११) मर्यादाका भविष्यन्ताह मानवाः ॥ १८॥ अद्यांना यातनाका दिनमूनोपदेशः । मिलाप बहुलास्तुच्छा जिनपोपि मानन ॥ ३९ ॥ सरसा पपमा रिफनातिच्न । जिनजन्मादिकल्याणक्षेत्र नीयवमाधिते || ४-10 नागमणांत सदनों मारवादनिसा स्वास्थताह कांचनान्द विषय दक्षिणादि । युम्नम, जनासमय पाने भपक्षनिक्षलान् । बामपन्ति प्रश्नाः पातमान दुराशया ॥ १२ ॥ नानाननमानानशामृगानगक्षनान् । राहांना विधायनि अकुला न माना ॥ मानामहुनतः सिन्धारस्पनि मरतो कि !

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