Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 56
________________ भद्रबाहु चरित्रहोता है, मनोहर तथा अनवद्य विद्यायें प्राप्त होती हैं, गुणोंसे विशिष्ट गुरुओंके चरणकमलमें अत्यन्त भक्ति होती है, गंभीरता उदारता तथा धैर्यादि गुणोंकी उपलब्धि होती है, उत्तम चारित्र होता है, प्रभुत्वता होती है, जैनधर्म में श्रद्धा (आस्था) होती है तथा चन्द्रमा के समान निर्मल अनन्तकीर्त्ति प्राप्त होती है ॥ १२८ ॥ निर्मल ज्ञानरूप क्षीरसमुद्र की वृद्धि के लिये चन्द्रमाँ, श्रीगोवर्द्धन गुरुके चरण रूप उदयाचल पर्वतके लिये सूर्य, मनोहर कीर्त्तिके धारक, उत्तम २ गुणोंके आलय तथा मुनियोंके स्वामी श्रीभद्रबाहु मुनिराजका आपलोग सेवन करें ||१२९ ॥ इति श्रीरत्नकीर्त्ति आचार्य के बनाये हुये भद्रबाहु चरित्र के अभिनव हिन्दी भाषानुवादमें भद्रबाहुके दीक्षाका वर्णनवाला प्रथम - परिच्छेद समाप्त हुआ ||१|| · गाम्भीयोंदा येधैर्यप्रभृतिगुणगुणी वर्यवृत्तं प्रभुत्वं श्रद्धा श्रीजेनमार्गे शशिधरविशदाऽमन्तकीर्तिः सुपुण्यात् ॥ १२८ ॥ बिमलबोधसुधाम्बुधिचन्द्रकं गुरुपदोदमभूधरभास्करम् | ललितको समुदारगुणाकर्य भगत भद्रसुतं मुनिनायकम् ॥ १२९ ॥ इति श्रीमद्रबाहुचरित्रे आचार्यश्रीरत्ननन्दिविरचिते भद्रबाहुदीक्षा वर्णनो नाम प्रथमः परिच्छेदः ॥९॥

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