Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 49
________________ समूलभाषानुवाद। १९ समय भद्रबाहु-संसारभरमें जिनधर्मके उद्योतकी इच्छा से-अत्यन्त गर्वरूप उन्नतपर्वतके शिखर ऊपर चढेहुये, अभिमानी, अपनी कपोलरूप झालरीसे उत्पन्न हुये शब्द . से इच्छानुसार प्रचुर रसयुक्त महाविद्यारूप नृत्यकारिणी को नृत्य करानेवाले तथा दुसरोंसे बाद करनेमें प्रवीण ऐसे २ विद्वानोंसे विभूपित महाराज पद्मधर की सुन्दर सभामें गया ॥ ८९॥ ९१ ॥ पद्मधर नृपति भी समस्त विद्याओंमें विचक्षण द्विजोचम भद्रबाहुको आता हुआ देखकर तथा उसे अपने पुरोहितका पुत्र समझकर मनोहर आसनादिसे उसका सत्कार किया। वह भी महा. राजको आशीर्वाद देकर समाके वीचमें बैठगया ॥९॥ ॥९३॥ वहां पर उन मदोडत वाम्हणोंके साथ विवाद करके उदयशाली तथा विशुद्ध आत्माके धारक भद्रबाहुने स्याद्वाद रूप खड्गसे उन सबको जीते ॥९॥ और साथही उनके तेजको दबाकर अपने तेज सावन्यदा पद्माघरभूपतिसंसदम् । चिकीजिनधर्मस्सोयोत डोके समासद || मलवंगतुगादियानमहोदतः । पण्डिमण्डिता रम्या पादविद्याविनारद: ॥९॥ खगशालरीजम्मानिनादन निजेच्छया । नतपद्रिमहाविद्यानटीनुरमाविताम् ॥ १५ ॥ मद्वाहुमहामटं दृष्ट्वाऽऽयात विद्यापतिः । पुरोषतः मुई झावा विश्वविद्याविचक्षणम् ॥ १२ ॥ बहु संमानयामास मनोनयनादिमिः। दत्वाऽशीर्वचनं सोऽपि मप्येसममुपाविशत् १९३॥ फुर्वतनमहाबाद सन विगैर्मदोस्तैः । साहारकरवालेन सावानजीनयत् ॥ ९॥ विधूप वादिना

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