Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 41
________________ समून्द्रभाषानुपाद । द्विज नाम ब्राह्मणका भी है ॥ ४० ॥ सोमशर्मकचन्द्रवदनी, विशाल लोचन बाली, स्वाभाविक अपने सौन्दर्यले देवाङ्गनाओं को जीतने वाली तथा सूर्यकी जैसी कान्ति होती है चन्द्रमा की जैसी चन्द्रिका होती हैं अभिकी जैसी शिखा होती हैं उमी समान सुन्दर लक्षणोंकी घारक प्रशंसनीय सोमश्री नाम कान्ता थी ॥ ११-१२ ॥ सोमशर्म अपनी सुन्दरीके साथ अतिशय रमण करता हुआ सुख पूर्वक कालको विता था जिसप्रकार कामदेव अपनी रतिकान्ता के साथ प्रणय पूर्वक रमण करता हुआ कालको बिताता है ॥ ४३ ॥ पुण्य कर्मके उदय से कृशोदरी सोमश्रीने - शुभनक्षत्र शुभ ग्रह तथा शुभल में अनेक प्रकार शुभ लक्षणोंसे युक्त तथा कामदेव के समान सुन्दर स्वरूपशालि पुत्ररत्न उत्पन्न किया, जिसप्रकार उत्तम वुद्धि ज्ञान उत्पन्न करती है । उस समय सोमशर्मने पुत्रकी खुशीमें याचक लोगों के लिये उनकी इच्छानुसार दान दिया ||४४-४५|| और स्त्रिये - मधुर २ गाने लगी, नृत्यकरने राजाऽपि न चापि गरुडी यकः ॥४०॥ सती मतविका नाम्ना सोमश्रीसखिया:भवत् । चन्द्रानना विशालाक्षी रूपापास्तमुराद्दना || ४१ || मानोविभव चन्द्रस्य चन्द्रिकेष दया यतेः । शिखा दीपस्य वा सफा तस्याऽऽमीत्मा गुलक्षणा ॥ ४२ का रम्यमाणोऽसौ कान्तवा कान्तया समम् । अनीनयामुले कार्ड प्रीत्या रत्या यया स्मरः ॥ ४३ ॥ पुण्यात्यासूत सा तन्त्री पुष्यलक्षणलक्षितम् । तनूजं स्मरसंकाचं सुबोध वा सती मतिः ॥ ४४ ॥ शुभे शुभ लग्ने शुभे तातस्तदा मुदा । वित्तं विधानयामास माचकेभ्यो यथेप्सितम् ॥ ४५ ॥ कामिनीकलानोत्यदुन्दुभि• ११

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