Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 36
________________ भद्रवाहु-चरित्रइस लोक में विख्यात जम्बूद्वीप है । वह आदि होने पर भी अनादि है । परन्तु यह असम्भव है कि-जो आदि हैं वह अनादि नहीं हो सकता। इस विरोधका परिहार यों करना चाहिये कि यह जम्बूद्वीप और २ धातकी खण्ड: आदि सब द्वीपोंमें आदि (पहला) द्वीप है । इसलिये जम्बूद्वीपके आदि होकर अनादि होनेमें दोष नहीं आता । यह द्वीप षटकुलाचल पर्वतों से सेवनीय है। अर्थात्--इसके भीतर छह कुलाचल शेल हैं तो समझिये कि-प्रचुर लक्षमी तथा कुलकमसे वशवाः राजाओंके द्वारा सेवनीय क्या वसुन्धराधिपति है ? उस जम्बूद्वीपके ललाटके समान उत्तम भरत क्षेत्र सुशोभित है। और उसके तिलक समान पुडूवर्द्धन देश है॥२१-२२|| जिस देशमें-धन धान्य तथा मनुष्यॊसे युक्त, धेनुओंके समूहसे विभूषित तथा महिष ( भैंस) निवहसे परिपूर्ण छोटे २ ग्राम राजाओंके समान मालूम देते हैं। क्योंकि-राजा लोग भी धन धान्य जनसमूह पृथ्वीमण्डल तथा राणियोंसे शोभित होते हैं ।। २३ ॥ वधि समासेन गुरुचितः ॥ ३० ॥ जंबद्वीपोष विख्यात आयोऽनादिरपीरितः । कुलभूषरसेव्यो नृपो वा विपुलनिया ॥२१॥ तदीयमाबद्भाति भारत क्षेत्रमुत्तमम् तमालपत्रवतस्य देशोऽभूत्पौण्डवर्द्धनः ॥ २२ ॥ धनधान्यजनाकीर्णा गोमंडलवि. अदिताः । प्रामा यत्र पायन्ते महिषीकुलसंकलनः ॥ १३॥ फलदा विहितच्छाया:

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