Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 35
________________ समूलभावानुवाद। श्रेणिक महासजके प्रश्न के उत्तर में भगवान वीरजिनेन्द्रनामीर मेघ समान दिव्यध्वनिके निनाद से भव्यरूप मयूरोको आनन्दित करते हुये बोलेनराधिनाथ ! मेरे मुक्ति जानेके वाद-गौतम, सुधर्म, जम्व्ये तीन केवलज्ञानी होंगे और समस्त शास्त्रके जानने वाले श्रुतकेवली-विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोव. ईन तथा भद्रबाहु ये पांच महर्षि होंगे । और पंचम कलिकालमें ज्ञान धर्म धन तथा सुख ये दिनों दिन घटते जावेंगे ॥ १५-१८॥ हे श्रेणिक ! अब आगे तुम भद्रबाहु-मुनिका चरित्र सुनो । क्योंकि-जिसके श्रवणसे मूर्ख लोगोंको अन्यमतोंकी उत्पत्ति मालुम हो जायगी ॥ १९॥ उस समय श्रेणिक महाराजने-श्री वीरजिनेन्द्र के मुखसे भद्रबाहु मुनिका चरित्र जिसप्रकार सुनाथा उसे उसी . प्रकार इससमय संक्षेपसे गुरुभक्तिके प्रसाद से मैं कहता हूँ ॥२०॥ प्याजहार गिराम्पतिः। गंभारयननिपिदियन मन्त्रीकनः ॥ १५॥मयिमुकिमित राजन् गौतमाश्यः स्वधर्मवाक् । जम्बूनामा भविष्यन्नि प्रयोऽमा लेक्षणाः ॥ ६॥ विश्वश्रुतविदो विष्णुः नदिमित्रोऽपराजितः । वो गोवर्द्धनो भदो भद्रवाहलयान्तिमः ॥ १७ ॥ श्रयनिसामानः पर्वतेत्रमया योपो पमा धनं साध्य कलो हीनत्वमेष्यति ॥ १८॥ युग्म भगवाहमवं वृतं श्रेणिकानो निराम्यताम् । पोचमतोत्सातिईस्पत मुग्धमानः ॥ ९॥ श्रेणिकेत पाप्रावि श्रीवारमुनिर्गतम् । तपाश्मना - -

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