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नाम निशान मी न था किन्तु जो आचार्य विक्रमको समय क्या नवमी शनारिदमें हुये हैं वे भी ना पत्यका प्रयोग दिगम्यरियोंक लिये ही करते हैंकुसुमाचालिके प्रणेता उदयनाचार्य १६ – पृष्टमें लिखत है
निरावरण इति दिगम्बराः इसी तरह न्यायमरीके पनाने वाले जयन्त भट्ट १६७ वें पृष्ठमें लिखते हैं कि
क्रियातु विचित्रा प्रत्यागमं भवतु नाम । यस्सनटापरिग्रहो वा दण्डकण्पहलुग्रहणं वा रक्तपट्यारणं वा
दिगम्बरवा वाऽळम्न्यतां कोत्र विरोधः - इनके अलावा और भी जिवनी जगहुँ प्रमाण आते हैं वे 'विवसन'
दिगम्बर" नम' इत्यादि शब्दोंमें व्यवहृत किये जाते हैं । वे सप दिगम्बर मतसे सम्बन्ध रखते हैं तो फिर क्यों कर यह माना जाय कि दिगम्बर धर्म आधुनिक है । इसके आधुनिक कहने वालोंको ऐसे प्रमाण भी देने चाहियें जिन्हें सर्व साधारण मान सके। केवल मलवाही किसी पर आक्षेप करना सर्वथा अनुचित है। आजका जमाना नवीन ढल्के प्रवाहमें बह रहा है। अब लोग यह नहीं चाहते हैं कि पिना किसी प्रबल यक्षिके कोई बात मानली जावे। किन्तु जहां तक होसके उसे युक्ति और प्रयुक्तियों के द्वारा अच्छी तरह परामर्श करके मानना चाहिये । जब प्रत्येक विषयके लिये यह बात है तो यह तो एक बड़ा मारी विपम विषय है। इसमे तो बहुत ही सुदृढ़ प्रमाण होने चाहिये । हम यह नहीं कहते कि आप लोग हमारे कहे हुयेको अपने हृदय में स्थान दें। परन्तु साथ ही इतना अवश्य अनुरोध करेंगे कि यदि हमारा लिखा हुआ अयुक्त होतो उसे सर्व साधारणमें अयुक्त सिद्ध करो। हमें इसबातसे बड़ी खुशी होगी कि-जिस तरह हमने अपने प्राचीनल सिद्ध करने में एक तीसरे ही मतके प्रमाणोंको उपस्थित किये है इसी तरह तुम भी अपने कहे हुये प्रमाणको सप्रमाणप्रमाणभूत ठहरा दोगे। हम प्रतिक्षा पूर्वक यह बात लिखते हैं और न ऐसे लिखनेस हमें किसी