Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 23
________________ (१९) कदाचितकहो कि यदि, जिनकल्पके तुम बड़े अदानी हो और उसे ही प्रधान समझते हो वा बान तुम लोगोंमें यह हालत है किएक साधु तक ऐसा नहीं देखा जाता जो जिनकल्पका नमूना हो ? और हम लोगोम साधु सो दसनमें आते हैं। क्या जिन भगवानका । यह कहना कि-पचम कालंक अन्त पयत साघुओका सद्भाव रहेगा व्यर्थ ही चला जायगा! इसके उत्तरमें विशेष नहीं लिखना चाहते । किन्तु इतनाही बहना उचित समझते हैं कि जो बात जिन भगवानकी ध्वनिस निकली है यह वास्तवमें सत्य है और वैसा ही वर्तमानमें दिखाई भी दे रहा है। जिन भगवानने जो यह कहा है कि पश्चमकालके अन्त पर्यन्त साधुओका सद्भाव रहेगा परन्तु इसके साथ यह भी तो कह दिया है कि बहुत ही विरलतासे। तो यदि केवल इस देश में वर्तमान समयमें उनके न भी होनसे यह विश्वास तो नहीं किया जा सकता कि मुनियोंका सर्वथा अभाव होगदूसरे-तुम लोगोंमें शासन विरुद्ध वेपके धारक यदि यहुत भी साधु मिल जावें तो उससे हमें छाम क्या? भरे! आज इस देशमें हंस सर्वथा नहीं देखे जाते तो क्या विश्वास भी यही कर लिया जाय कि इस होता ही नहीं है ? विचारशील इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे । दूसरे ध्याती गरुड़वोधेन न हि इन्ति विपं वकः । बगलेका गरुड़ रूपमें कोई कितना भी ध्यान क्यों न करे परन्तु वह कमी विपको दूर नहीं कर सकता । वो उसी तरह केवल ऐसे वैसे বাঘ্রদ্ধা করার হীন ঈ অ লী কা লা ভরা জি কামাই अमावकी पूर्ण हो जायगी से तो आज केवल भारतवर्ष में ही पावन लाख साधु हैं। परन्तु उनसे उपयोग क्या संधैगा? हां! एक बात और श्वेताम्बर लोग कहते हैं जिससे वे अपने प्राचीन होनेका दावा रखते हैं। वह यह है कि हम लोगोंमें अभीतक खास गणधरॉक बनाये हुये अङ्गशास्त्र हैं और तुम लोगोंमें नहीं है। इससे भी हम प्राचीन सिद्ध होते हैं। परन्तु यह प्रमाण भी सगाव नहीं है। इसमें हमें बाधा यह देना है कि यदि तुम खास गणघरों

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