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कर बने हैं। उनके बनाने वाले गणघर न होकर आचार्य लोग है और यही कारण है कि उन्होंने सब अन्य अपने ही नामसे प्रसिद्ध किय है। यह युक्ति भी श्वेताम्बर मतके प्राचीन सिद्ध करनेमें असमय है तो अभी ऐसा कोई प्रवल प्रमाण नहीं है जिससे वेवाम्बर मत दिगम्बर मनसे पहलेफा सिद्ध होजाय ? और दिगम्बर मत पहलेमा है यह वात वदिक सम्प्रदायक प्रन्योंक अनुसार हम पहले ही सिद्ध कर आये हैं। इसके अलावा दिगम्बरोफे प्राचीन सिद्ध होनमें यह मी हेतु देखा जाता है कि___ उनके किवने आचार्य ऐसे हुये है जो उनका अस्तिल विक्रम महाराजकी पहली ही शवारिदमें सिद्ध होता है। देखिये तो
कुन्दकुन्दाचार्य विक्रम सं. ४९ में हुये हैं। उन्होंने पश्चास्तिकायादि कितने ही अन्य निर्माण किये हैं । समन्तभद्रस्वामी वि० स० १२५ में हुये हैं इनके बनाये हुये गन्धहस्तिमहाभाप्य, रनकरण्ड, आतपरीक्षादि कितने प्रन्थ बनाये हुये हैं । धनारसका शिवकोटि राजा भी उन्हीं के उपदेशसे जैनी हुआ था । उसने भी भगवतीआराधना प्रभूति कई अन्य निर्माण किये हैं। इनके सिवाय और भी कितने महापं दिगम्बर सम्प्रदायमें विक्रमकी पहली शताब्दिमें हुये है। इसलिये श्वेताम्बरोंकादिगम्बर मनकी उत्पति वि० सं० १३८ में कहना सर्वथा वाधित सिद्ध होता है । जब किसी तरह दिगम्बर मत श्वेताम्बर मतके पीछे निकला सिद्ध नहीं होता तो उनकी कथा-कल्पना कहां तक ठीक है? इसकी परीक्षाका भार हम अपने पाठकोंके ऊपर छोड़ते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वे निष्पक्ष दृष्टिसे दोनों मतके ऊपर विचार करें।।
यद्यपि हमारी यह इच्छा थी कि ऊपर लिखे .हुये आचाकि वायत यह सविस्तर सिद्ध करें कि ये सब विक्रमकी पहली शताब्दिमें हुये हैं । परन्तु प्रस्तावना इच्छासे अत्यधिक बढ़ गई है । इसलिये 'पाठकोंकी अगाचि न हो सो यहीं पर विराम लेकर आगे लिये आशा दिलाते हैं कि हम श्वेताम्बर वथा दिगम्बरोंके सम्बन्धमें एक खतंत्र अन्य लिखने वाले है उसमें यह बात भी अच्छी वर