Book Title: Bhadrabahu Charitra
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Jain Bharti Bhavan Banaras

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Page 32
________________ ग्रन्थारम्भ । 2008 जो अपने केवलज्ञान रूप सूर्यके द्वारा लोगों के हृदयस्थित अन्धकारका भेदन करके महावीर (अनुपम सुभट ) पनेको प्राप्त हुये हैं वे सम्मति ( महावीर ) जिनेन्द्र हम लोगोंके लिये समीचीन बुद्धि प्रदान करें ॥१॥ धर्म से शोभायमान, वृषभ के चिह्न से चिह्नित, इन्द्रसे अर्चनीय, धर्मतीर्थ के प्रवर्त्तक तथा कर्म शत्रुओं के भेदने वाले ऐसे श्रीवृषभनाथ भगवान के लिये मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २ ॥ मनोभिलषित उत्कृष्टपदकी प्राप्ति के लिये उत्कृष्टपदको प्राप्त हुये पञ्चपरमेष्ठिके उत्कृष्ट - लक्ष्मी-विराजित चरणोंको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ३ ॥ श्रीभद्रबाहुचरित्रस्. सद्घोषभाना मित्वा बनानामन्तरं तमः । यः सम्मतित्वमापन्नः सन्मति सम्मतिः क्रियात् ॥ १ ॥ षर्म वृषमं वन्दे वृषभानुं वृथाऽर्थितम् । वृपतीर्थप्रणेतारं भेत्तारं कर्मविद्विषाम् ॥ १ ॥ परमेष्टपदाप्तानां परमेष्टपदाप्तये । परमेष्टपद बन्दे सत्यश्वपरमेष्ठिनाम्॥ ३ ॥ आईसी भारती पूज्या लोकालोकप्रदीपिका । रजो विधून

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