________________
(१३) ज्योतिषशास्त्र के अद्वितीय विद्वान हुये हैं उनके समयका निश्चय करते हैं तो उस विषयमें यह प्रसिद्ध लोक मिलता है।
धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशत
वंतालमघटसर्पकालिदासाः। ख्यातो वराहमिहिगे नृपतेः सभायां
रवानि वररुचिर्नव विक्रमस्य ॥ . कहनेका आशय यह है कि-श्रीविक्रम महाराजकी सभामें धन्वन्तरि अमरसिंह कालिदास प्रमृति जो नव रन गिने जाते थे उनमें वराहमिहिर भी एक रन थे। इन्होंने अपने प्रतिष्ठाकाण्डमें एक जगहें लिखा है किविष्णोर्भागवता मयाश्या सवितुर्विमा विदाह्मणां
मातृणामिति मादमण्डलविदः शपोः समस्सा दिनः । शाक्याः सर्वहिताय शान्तमनसो नग्रा जिनानां विदु
यें यं देवमुपाश्रिवाः स्वविधिना ते तस्य कुर्युः क्रियाम् ।। मात्र यह है कि-वैष्णव लोग विष्णुको प्रतिष्ठा करें, सूर्योपजीवी लोग सूर्यको उपासना करें, विन लोग ब्राह्मणकी क्रिया करें, ब्रह्माणी इन्द्राणी प्रभृति सप्त मातृमण्डलको उनके जानने वाले अचर्चा करें, वौद्ध लोग बुद्धकी प्रतिष्ठा करें, नग्न (दिगम्बर माधु) लोग जिन भगवानकी पर्युपासना करें। थोड़े शब्दोंमें यों कहिय कि जो जिसदेवके उपासक हैं वे अपनी र विधिसे उसीकी क्रिया करें।
अब इतिहासके जानने वाले लोग इस बातका अनुभव करें कि यह वराहमिहिरका ऋयन दिगम्बर मतका अस्तित्व महाराज विक्रमक
• हमने तो यहां तक किम्बदन्ती सुना है कि वराहमिहिर और श्रीमाया ये दोनों सहोदर थे। यह रात कहाँ तक ठीक है ! सहमा विश्वास नहीं होता। क्योंकि इस विषय में हमारे पास कोई ऐसा सबन प्रमाण नदी है जिसमें इस किम्बदन्ती प्रमाणित कर सके । यदि हमारे पाठक इस विषस कुछ जानते हों वो साबित कर हम उनके बहुत मारी होग।