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( १३ ). A variety of new standpoints, the same teaching in a different from and from a neve angle, is therefore belpful, and it is in this * light that we strongly recommend lovers of Gita to read this Hindi publication of Swami Attmanard Muni (३. बोम्बे-क्रानिकल ता० १६-१२-४३ समालोचक माननीय
श्रीमनु सूवेदार (M.L A. Central)
यह अमूल्य रचना दो खण्डोंमे विभक्त है। पहले खण्डमें मूल श्लोक और उनका भावार्थ दिया गया है। प्रत्येक अभ्यायके अन्तमें उसी अध्यायका स्पष्टीकरण भी दिया गया है । परन्तु यह वह पहला खण्ड है, जोकि भारतके गीता-साहित्यके लिये एक मौलिक और स्वतंत्र देन है इसमें लेखकने 'सांख्य व 'योग' दोनोंके मूलभूत सिद्धान्त अनेकों युक्तियों व दृष्टान्तोंसे सुन्दर व संक्षिप्त भापामें खोला है। उन्होंने प्रत्येक अध्यायपर समालोचना भी दी है, जिसके द्वारा उन्होंने गीताके उपदेशोंका समन्वय किया है तथा इस जगन्मान्य भगवद्-वाणीमे आदिसे अन्ततक चलनेवाले सारभूत सूत्रको पकडकर प्रकटकर दिया है। ___ नये नये मतोंका कई रूपोंमें प्रतिपादन तथा मूलभूत उपदेशका एक निराले ढंगसे तथा नये दृष्टिकोणसे विवेचन बहुत उपयोगी है । इस आधारवर हम गीताप्रेमियोंको सानुरोध • परामर्श देते हैं कि वे इस हिन्दी रचनाका मनन करें। (४) माधुरी' लखनउ, अक्टूबर सन् १६४४, समालोचक राय बहादुर श्री मदनमोहनजी वर्मा, एम ए, सेक्रटी शिक्षा-विभागबोर्ड अजमेर, वर्तमान रजिस्ट्रार राजपूताना विश्व विद्यालय