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अहिंसामय दृष्टि ने महात्मा गांधीजी को भी पर्याप्त प्रभावित किया था ।
आज भी देलवाडा, राणकपुर, पालीताणा जैसे विश्वप्रसिद्ध तीर्थों, जिनमंदिरों की शृंखलायें, अति विराट प्राच्य साहित्य, प्राचीन परम्परा का विशुद्ध श्रमण जीवन व भगवान श्रीमहावीरस्वामी की करुणा की जीवंतता जैन धर्म की गौरवप्रद संपत्ति है, जो विश्व को आश्चर्यचकित कर रही है।
इस तरह जैन धर्म अनादिकाल से प्रवाहित एक शाश्वत व मौलिक धर्म है । संस्कृत के 'हिण्ड्' धातु से हिंदू शब्द बना है, जिसका अर्थ है चलना । आत्मा इस लोक से परलोक में प्रस्थान करती है, ऐसा जो भी मानते है, वे हिंदू है । एक दुसरी परिभाषा के अनुसार जो हिंसा से दुःखी होते है, अहिंसा को परम धर्म समजते है, वे हिंदू है । वे चाहे वैदिक हो, वैष्णव हो, शीख हो, पारसी हो, जैन हो या बौद्ध हो, वे सब 'हिंदू' है। राष्ट्रीयता की महान भावना हिंदू प्रजा की इस परिभाषा में निहित है । जिसमें प्रत्येक धर्म की स्वतंत्रता भी सुरक्षित है, एवं प्रेम व शांति से पूर्ण राष्ट्रीय एकता की भावना भी।