Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 10
________________ साडे बारह साल के बाद ऋजुवालुका नदी (बिहार) के किनारे पर भगवान श्रीमहावीरस्वामी विशुद्धतम ध्यान की धारा में थे तब उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ । यह सर्वज्ञता की उपलब्धि थी, जिस के बल से उन्होंने विश्वकल्याण के मार्ग को देखा और उसका यथार्थ उपदेश देना शुरू किया । विश्व के सूक्ष्म से भी सूक्ष्म जीवों का स्पष्ट प्रतिपादन, सर्व जीवो की रक्षा की परम पवित्र भावना और उत्कृष्ट अहिंसामय जीवन की पालना यह भगवान श्रीमहावीरस्वामी के उपदेश की विशिष्टतायें है। भगवान श्रीमहावीरस्वामी ने जो उपदेश दिया, वह विश्वशांति की आधारशिला बन सकती है। उन्होंने कहा, वह तूं ही है, जिसे तूं मारना चाहता है । तूं सर्व जीवों को अपने समान देख । दुःख या मृत्यु जैसे तुझे पसंद नहीं है, वैसे उन्हें भी पसंद नहीं है । तूं दुसरों के प्रति ठीक ऐसा ही व्यवहार कर, जो तूं खुद अपने लिये चाहता है । भगवान श्रीमहावीरस्वामी के इस अहिंसा, प्रेम और करुणामय उपदेश से प्रभावित होकर लाखों लोगोने अपने जीवन से हिंसा, क्रोध, लोभ, हवस आदि दुर्गुणों को दूर किया । युद्धों व विवादों के स्थान पर शान्ति और प्रेमभावना का प्रसारण हुआ । सर्वज्ञता के प्रकाश में प्रभु ने विश्व के गहन सत्य को देखा, और उसका यथार्थ प्रतिपादन किया, जो आज भी विराट जैन साहित्य में सुरक्षित है, और समग्र विश्व के अनेकानेक विद्वानों को आकर्षित कर रहा है। भगवान श्रीमहावीरस्वामी की प्रेम और करुणाभावना का उपहार आज भी जैन जनता में सरक्षित है। जैन साध-साध्वी आज भी पर्ण अहिंसामय जीवन जीते है। वे न वाहन का उपयोग करते है, न इलेक्ट्रीसिटी का । वे भारतभर में पदयात्रा करते है, और प्रेम, शांति व करुणा का उपदेश देते है। उन के उपदेशने जनकल्याण के कार्यो में कीर्तिमान बनायें है । नदी की बाढ़ हो या धरतीकंप, त्सुनामी का प्रकोप हो या अकाल...समस्त जनता एवं पशु तक की सहाय के लिये जैनों की ओर से एक ही दिन में लाखों और करोड़ो रूपये की न केवल सहाय आ जाती है, जैन युवा कार्यकर्ताएँ अपने घर-परिवार-व्यापार आदि को छोड़कर आपत्तिग्रस्त विस्तार में स्वयं सहायकार्य में लग जाते है । जीवदया, समाज-कल्याण, शैक्षणिक सुविधाएँ, अस्पतालनिर्माण, मेडिकलकेम्प आदि में जैनों का उल्लेखनीय योगदान रहता है, जिस का आधार भगवान महावीरस्वामी व उनका प्रेम व करुणामय उपदेश है। भारत के लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कहा था कि जैनधर्म विश्वधर्म बनने के लिये योग्य है। विश्वप्रसिद्ध चिंतक ज्योर्ज बर्नाड शो ने कहा था कि मैं अपना अगला जन्म एक जैन परिवार में लेना पसंद करूंगा । जैन धर्म की उत्कृष्ट

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