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खणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा । सांसारिक सुख क्षणमात्र का है, जब कि दुःख दीर्घ-सुदीर्घकालीन है ।
कथाकारने केवल नकारात्मक (नेगेटीव) बात को ही उपन्यस्त नहीं कि है, अपितु समांतर ही हकारात्मक (पोझिटीव) बात भी ऐसी विधा से प्रस्तुत की है, कि वाचक मंत्रमुग्ध हो जाये । गुणवान बनने के लिये, उस के हृदय में प्रबल अभिलाषा उत्पन्न हो जाये । उत्कृष्ट भोगसामग्री के बीच भी मनीषी की निर्विकार चित्तवृत्ति.... विचक्षण का ज्वलंत विराग...बुधसूरि का निरुपम चरित्र...उत्तम की अद्भुत नि:संगता और कोविद की अनासक्ति...एक एक गुण का दर्शन भ्रामक सुख की दौड़ को स्थगित करने के लिये पर्याप्त है । उस स्रोत से आत्मा को कभी तृप्ति नही मिल सकती, जो आत्मा की भीतर से नही निकला है । हज़ारो ययाति - दुर्योधन - गिझनी मृगतृष्णा की प्यास में जीवनभर दौड़े गये है...कस्तूरीमृग की तरह सुरभि की शोध में भटकते रहे है...पर किसी को भी कुछ भी हाथ नही लगा है...सिवा पसीना, परिश्रम और पीडा...सुख तो भीतर है, वह बाहर कैसे मिल सकता है ?
उपमिति केवल कथाग्रंथ या धर्मग्रंथ नहीं है, अपितु सफल जीवन की शैली है...सुख-शांति का राजमार्ग है...इस जनम और जनमो जनम को सुखसमृद्ध करने की कला है । कुशल डॉक्टर, बुद्धिशाली वकील, उद्योगपति, तीव्र मेधावी व्यापारी, अध्यापक
और आइ.टी. के मास्टरमाइन्ड छात्र...जिन के पास भी समजशक्ति है, उन सब को हार्दिक निमंत्रण है...उममिति के अंतरंग विश्व में पदार्पण करने के लिये... आप की बुद्धि की सार्थकता भी इसमें है, और जीवन की सफलता भी ।
इस के वाचन से आप को ही प्रतीत होगा की बाह्य सृजन, संपत्ति, सत्ता, प्रतिष्ठा सब कुछ न केवल व्यर्थ है, अपि तु भयानक भी है । एक एक प्रस्ताव हृदयग्रन्थि का विच्छेद करते जायेंगे, मन को द्रवित करते रहेंगे, और जब अंतिम प्रस्ताव पराकाष्ठा को प्राप्त होगा, तब...थोडी भी संवेदनशीलता होगी, तो अश्रुओं का बाँध तूट जायेगा, और उन अश्रुओ की उष्मा ही दोषो को एवं दुःखो को विनष्ट कर देगी।
इस कथा को उस के मूल रूप में संस्कृत में पढ़ने का जो आनंद और जो अनुभूति है, वह वर्णनातीत है । तथापि जो संस्कृत भाषा से परिचित नहीं है, उन के लिये संतों एवं सज्जनोने इस ग्रंथ का अनुवाद किया है। उपमिति विश्व का अद्वितीय रूपकग्रंथ है। विश्व की अनेकानेकभाषाओ में उस का अनुवाद हुआ है। गुजराती अनुवाद की पाँच
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