Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 129
________________ उपरोक्त विधा से पूर्ण सम्मान करता है, वही शास्त्र जुलम क्यों करेगा । नारी तो घर का रानी है । परिवार का प्राण है । उसे घर से निकालकर बाझार में लाने से उस की जो दुर्दशा हुई है, उस का बयान करना मुमकिन नहीं। परिवार विशीर्ण हुए, संतान हुए, माता-पिता असहाय हुए, सात्त्विक भोजन दुर्लभ हुआ... ऐसी सैकडो समस्याए एक बाजु में है, तो दुसरी ओर नारी की कोमल काया पर दुगुना दायित्व, भयानक मानसिक तनाव, चिड़चिडानापन, बस- ट्रेन आदि में में सफर की यातना, हज़ारो हवसखोरो की आँखो की सामना, बोस से लेकर प्युन तक के पुरुषो से अवर्णनीय परेशानीया.... ऐसी सैकड़ों पीडायें है I - यह नारीस्वातंत्र्य है ? या नारी जुलम ? विश्व में भयानक विधा से बढवी हुइ अनैतिक, दुर्घटनाये एवं स्त्री - आत्महत्या या स्त्री - हत्या के मूल में भी यह नारी स्वातंत्र्य (?) ही नही तो और क्यों है ? नारी तो घर की रानी है । जो माता-पिता तुल्य सासससुर के सान्निध्य में पूर्ण सुरक्षित है । किसी की हिम्मत नही, कि उसे आँख उठाकर देख भी सके । वह तो जीवदया - जयणा के पालनपूर्वक घर का संचालन करती है । संतानो में वात्सल्यपूर्वक संस्कार सिंचन करती है। पति को निर्मल प्यार देती है, एवं सेवा करती है । नीतिशास्त्र कहते है कि जिस घर में गृहिणी नहीं वह घर श्मशानतुल्य है | आधुनिक विश्व जिन्हें 'सफल नारी' (?) समज़ता है, उनके घर की एक मुलाकात ले आये, आपको यह बात अच्छी तरह समज़ में आ जायेगी । स्व- कर्तव्य एवं स्व-सुख से वंचित हो कर एव स्व- शील को असुरक्षित कर के जो सफलता मिले, वो वास्तव में निष्फलता ही है । शंका - यह सब पुराने जमाने की बाते है । अब जमाना बदल गया है । अल्ट्रा वुमन के इस ट्रेड में ऐसे शास्त्रपाठ कौन सुनेगा ? समाधान वह, जिसे अपने जीवन को वास्तव में सुखी बनाना है । जिसे दुःखी ही होना है, उन्हें भला कौन रोक सकता है । आप भले ही मेरी न मानो । किन्तु आधुनिक अल्टा वुमन की जो आदर्श है ऐसी अभिनेत्रीओ के पारिवारिक जीवन पर एक दृष्टिपात कर लो | आप को पता चल जायेगा कि जमाना जिस दिशा में दौड़ रहा है, उस दिशा में क्या है ? कही पढ़ा था यह संवाद अभिनेत्री - यह मेरे पति है । पत्रकार - आप के हर पति से मिलकर मुझे बहुत ही खुशी होती है । - १२९

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