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के काल में ?
समाधान - क्यों नहीं ? यह उदाहरण है प्रभु वीर की प्रथम शिष्या खुद श्रमणी श्रीचन्दनबालाजी का । ३६००० शिष्याओं की गुरुणी चरमशरीरा परम पुण्या इस साध्वीजी ने अपने से ही प्रतिबोधित हो कर दीक्षित बने साधुजी को दीक्षा के दिन ही विनयपूर्वक वंदना करी थी । (एक बात उल्लखनीय है, कि प्राचीन या आधुनिक कोई भी साध्वीजी विवश या बाध्य हो के वंदना नहीं करती, पर गुणदृष्टि से व जिनाज्ञापालन की दृष्टि से प्रमोद भाव से वंदना करती है, इस तरह उनकी तथा उनको हाथ जोड कर मत्थएण वंदामि कहते हुए गच्छाधिपतिओ की भी लघुता नहीं, किन्तु महानता ही है ।) क्या यह बात भी आधुनिक कथाकारों की कृति नही हो सकती ? बिल्कुल नहीं । यतः प्रभु महावीरस्वामिजी के स्वहस्तदीक्षित शिष्य, अवधिज्ञानी महात्मा श्रीधर्मदासगणि महाराजा ने खुद उपदेशमाला नाम के ग्रंथ में इस घटना का आलेखन किया है ।
शंका
समाधान
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शंका - क्यां आप उस ग्रंथ का मूलपाठ प्रस्तुत कर सकते है ?
समाधान
अवश्य, यह है महामहिम श्री उपदेशमाला ग्रंथ का वह मूलपाठ अणुगम्मइ भगवई, रायसुअज्जा सहस्सविंदेहिं । तह वि न करेइ माणं परियच्छइ तं तहा नूणं ॥१३॥ दिणदीक्खियस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्जचंदणा अज्जा । णेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सव्वअज्जाणं ॥ १४॥ वरिससयदीक्खियाए, अज्जाए अज्जदीक्खिओ साहू | अभिगमणवंदणनमंसणेणं, विणएण सो पुज्जो ॥१५॥ शंका - प्रभु श्री मल्लिनाथ भगवान स्त्री तीर्थंकर थे, तो क्यां वे अपने तीर्थवर्ती लघु साधुजी को वंदना करते थे ?
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समाधान - पहली बात तो यह है, कि तीर्थंकर चाहे कोई भी हो, कल्पातीत होते है, अत: सर्वसामान्य वंदनव्यवहार उन्हें लागू नही होता । दुसरी बात, वे दीक्षा समय भी केवल सिद्ध भगवंतो को वंदना करते है, यतः अरिहंत तो स्वयं है । तीसरी बात, प्रभु श्री मल्लिनाथ स्त्रीतीर्थंकर हुए, वह अनंत काल में एक बार होनेवाली आश्चर्यभूत घटना है। अतः एव इस अवसर्पिणी काल के दश आश्चार्यो में इस का भी समावेश है ।
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