Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 127
________________ जैन दृष्टि में नारी गौरव - वर्द्धमानतपोनिधि प.पू. आचार्यश्री कल्याणबोधिसूरिजी जैन जीवनशैली का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है श्राद्धविधिप्रकरण । परम उपकारी आचार्य श्रीरत्नशेखरसूरिजी ने वि०सं० १५०६ में इस महान शास्त्र रचना की थी । जो शास्त्र आगम आदि पूर्व शास्त्रो के आधार से निर्मित हुआ है, और आज ५६३ साल के बाद भी सखमय जीवन के मार्ग को प्रकाशित कर रहा है। जैन दृष्टि से नारी गौरव इस शास्त्र में विशद रूप से प्ररूपित है। नारी के प्रति पति का वचन कैसा होना चाहिये इस विषय में शास्त्रवचन है ___ सप्पणय-वयण-सम्माणणेण तं अभिमुहं कुणइ ॥२८३॥ पत्नी के प्रति पति का यह उचित कर्तव्य है, कि वह पत्नी को प्रिय वचन कहे, तथा पत्नी का सम्मान करे । शास्त्र संक्षिप्त एवं गंभीर होते है । अल्प शब्दो में बहुत कुछ कह देते है । गृहिणी कोइ दासी या गुलाम नहीं । किन्तु सम्मानपात्र है। पतिव्रतात्व यह नारीधर्म है, तो नारी का सम्मान करना यह पुरुषधर्म है । संत कबीरने कहा है। कबीर ! मीठे वचन से, सुख उपजे कुछ ओर । एही वशीकरण मत्र है, तजीए वचन कठोर ॥ मधुर वचन अनुपम सुखदायक है, वशीकरण मंत्र ही है, अत: कठोर वचन का त्याग करना चाहिये । वचन मधुर तो घर मधुर...घर मधुर तो जीवन मधुर...नारीगौरव का पहला सोपान यह है। जिसे प्रस्तुत कर के शास्त्रकार ने न केवल स्त्रीसम्मान का उपदेश दिया है, मगर घर को स्वर्ग बनाने का रहस्य भी बता दिया है। शास्त्रकार आगे कहते - वत्थाभरणाइ समुचियं देह ॥२८४॥ पत्नी को उचित वस्त्र और अलंकार देने चाहिये । सर्वत्र उचित बर्ताव ही शास्त्रोपदेश का तात्पर्य है, तो जो घर का आधार है, इस के प्रति उचित कर्तव्य की वे उपेक्षा क्यों करेंगे ? नारी तो विशेष सम्मानपात्र है । अत एव कहा है - न गृहं १२७

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