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आरोग्यविद्या
आचार्य कल्याणबोधि क्याँ खाना ? वेज ? या नोनवेज ? वैज्ञानिक दृष्टि से भोजन विचार
विज्ञान कहता है कि किसी भी व्यक्ति को अपने अनुरूप भोजन की पसंदगी करने के लिये अपनी प्रकृति व शरीररचना का विचार करना चाहिये । मनुष्य के विषय में विचार करें, तो उसके दांत मांसाहारी प्राणीओं के दांत से बिल्कुल नहीं मिलते । मनुष्य के बीच के दो दांत शेष दांतो के साथ एक ही कतार में होते है। परन्तु मांसाहारी जीवों के आगेवाले जो बड़े दो दांत होते है, वे दुसरे दांतों से बड़े तेज नुकीले ओर आगे की तरफ नीकले होते है। उनके पंजे-नाखून तेज होते है। उनके जबड़े सिर्फ ऊपर नीचे चलते है । वे अपना आहार निगलते है। उनकी जीभ खुरदरी होती है। वे जीभ से पानी पीते है। उनकी आंते छोटी होती है। उनका जिगर / उनके गुर्दे अपेक्षाकृत बडे होते है। उनकी लार में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल होता है । मनुष्य की शरीररचना इससे बिल्कुल अलग है । उसकी शरीररचना शाकाहारी प्राणीयों से मिलती है। शाकाहारी प्राणीओं के दाँत व नाखून नुकीले नहीं होते । उनके जबड़े सभी दिशाओं में चलते है । वे अपना आहार चबाते है। उनकी जीभ चिकनी / स्निग्ध होती है। वे होठ से पानी पीते है, उनकी आँते बड़ी होती है । उनका जिगर और उनके गुर्दे छोटे होते है । उनकी लार में क्षार (अल्केलाइन) होता है।
प्रकृतिने स्वयं मनुष्य को शाकाहारी अस्मिता प्रदान की है। उसने उसके शरीर की रचना भी तदनुरूप की है। यदि मनुष्य अपनी प्रकृति व शरीररचना से विपरीत भोजन लेता है, तो उसके शरीर पर दुष्प्रभाव पडेगा ही । तो चलों, अब देखते है, कि विश्व के प्रतिष्ठित विज्ञानी एवं डॉक्टर अपने संशोधन एवं अनुभव से क्या कहते है ? • डॉ. किंग्स्फोर्ड और हेग - मांस खाने से दांतों को हानि पहुँचती है, संधिवात हो
जाता है । इतना ही नहीं मांसाहार से क्रोध उत्पन्न होता है, जो अनेक रोगों का कारण है। डॉ. जोशिया आल्ड फील्ड (D.C.M.A., M.R.C., L.R.C.P., सिनियर
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