Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 91
________________ I समय जैसे मोड़ो वैसे मोड़ा जा सकता था, तब हमने उसे जीवनोपयोगी व समाजपयोगी शिक्षा न दी । उस पर व्यर्थ रट के बोजें डाल दियें । जिसका उसके सामाजिक या व्यवसायिक जीवन में कोई संबंध नहीं था, ऐसे विषयों का भार डाल दिया । बालक के जीवन के अमूल्य साल एक मदजूर की तरह इन बोजों को उठाने में बीत गयें । जो अति आवश्यक शिक्षा थी, उस का अवकाश ही न रहा, और दुसरी बाजू समाजविरोधी तत्त्वों ने नाना माध्यमों के द्वारा उस के क्रोध को उकसाया, उसे छल करना सीखाया, उसे पैसों के पीछे पागल बनाया, उस की हवस को भयानकतया भडकाया । परिणाम...हमारे सामने है । एक वृक्ष को उचित समय पर पानी न मिला । वह सूखने लगा । उस के पत्ते झरने लगे । अब उन सूखे पत्तो की शिकायत करके क्या फायदा ? अब उन पर सिंचन करने से क्याँ लाभ ? अब अवसर गया । हा, जिसका अवसर है, ऐसे वृक्ष के मूल में सिंचन करो, तो कुछ बात बने । आज भ्रष्टाचार, हिंसा व जातीय परेशानीयों से देश पीडित हो रहा है...हम शोर मचाते है ... आन्दोलन करते है.... तरह तरह के कानून बनाते है । किन्तु यह सब मुर्दे की चिकित्सा जैसा है। मुर्दा यदि तंदुरस्त हो सके, तो वह आनंद की बात है, पर जो जीवित है, जिसके लिये किया गया प्रयास सफल हो सकता है, जिसे जीवनोपयोगी शिक्षा देने के लिये करोडो का अर्थतंत्र एवं करोड़ों की स्थावर संपत्तियाँ है...लाखों शिक्षक नियुक्त किये गये है, उनकी उपेक्षा कैसे हो सकती है ? मूल में सिंचन न करना और फिर सूखे पत्ते को देखकर शोर मचाना, इसमें मूर्खता से अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । हमने अपने आप को दरिद्र समज लिया है, अतः हम सब कुछ पश्चिमी देशों से आयात करना चाहते है | इसी लिये हमारे पाठ्यपुस्तकों में से पितृभक्ति एवं भ्रातृभाव की अमूल्य शिक्षा देनेवाले रामायण के कुछ बचे हुए अंश भी अदृश्य होने लगे है और जेक एन्ड जी जैसे तत्त्वशून्य शब्दों के भूँसे प्रवेश करने लगे है । सत्ताधीशों के दिल में देश के मासूम बालकों का हित कितना बसा है, वह तो मुझे मालूम नहीं है, पर इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है, कि माता-पिता अपनी संतान के हित के विषय में कोई कोम्प्रोमाइज करना नहीं चाहते । 'फी' दे देकर जो माता-पिता अपने संतान को जिस शिक्षातंत्र को समर्पित करते है, उस शिक्षातंत्र से अपने संतान के सर्वांगीण विकास की अपेक्षा रखना, यह उन माता - पिता का पूरा अधिकार है । यदि माता - पिता जागृत होंगे, ९१

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