Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ को दूर कर सकता है। मद्यं कारणमापदाम् - शराब आपत्तियों का कारण है - ऐसा एक वचन व्यसनमुक्ति का शंखनाद कर सकता है । पितरो देवाः - माता-पिता देवता के समान होते है - ऐसा एक सुवर्णवाक्य घर को स्वर्ग बना सकता है। इन्द्रियैर्नियतैर्बुद्धिर्वर्धते - इन्द्रियों को अंकुश में रखने से बुद्धि बढ़ती है - ऐसा एक सुभाषित समाज को शिष्ट तथा सुशील बनाये रखता है, साथ ही साथ वैज्ञानिक साधनों के दुरुपयोग को रोकता है। नास्ति क्रोधसमो रिपुः - क्रोध जैसा कोई दुश्मन नहीं है - ऐसा एक सुवचन मन की शांति दे सकता है एवं दुर्घटनाओं को रोक सकता है। दानं सब्बत्थसाधकम् - दान सर्व प्रयोजनों को सिद्ध करता है - यह एक सुभाषित देश में त्याग व समर्पण की भावना को जीवंत रख सकता है। यह तो केवल एक झलक है। संसार की ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसका समाधान इस आर्ष उपहार में न हो । ऐसा कोई सुख नहीं, जो इन वचनों के अनुसरण से न मिले । समाज की ऐसी कोई बुराई नहीं, जो इसकी शिक्षा से दूर न हो सके । सारा विश्व आज हिंसा के तांडव से पीडित हो रहा है...भ्रष्टाचार व दुराचार की दुर्गन्ध से व्याप्त हो रहा है । तेरह साल का बालक अपने पिता को रिवोल्वर से शूट कर दे व बारह साल की कन्या कँवारी माता बने, ऐसी घटनायें दुनिया के अनेकानेक शहरो में सामान्य बन गयी है । इस स्थिति में भारत को दुनियाँ की राह पर चल कर बरबाद होना चाहिये ? या अपनी प्राचीन संस्कृति के भव्य उपहार का आदर करके विश्वोद्धार के लिये अग्रेसर होना चाहिये ? खून या जातीय अत्याचार की एक ही घटना पूरे दो परिवारों का सत्यानाश कर देती है । हवस की आग सुखी विवाहितजीवन के टुकड़े टुकड़े कर देती है । निरंकुश लोभ भयानक अनर्थों को आमंत्रित करता है। क्रोध का विस्फोट सारे घर को नर्क बना देता है। जिस के मन में ऐसे दोषों ने अपने घोंसले बनाये है, वह भले ही हाइ-एज्युकेटेड हो, भले ही उसके नाम के पीछे डिग्रीओं की लंबी लंबी पूंछ लगती हो, वास्तव में वह मूर्ख है । संत कबीर के वचन याद आते है -

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151