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आर्षविश्व आचार्य कल्याणबोधि
सत्य का साक्षात्कार
आत्मोपनिषद्
अयोध्यानरेश की राजसभा पूर्णतया भर गयी है । क्रमश: एक के बाद एक राजकार्य चल रहा है। तब प्रतिहारीने आकर कहा, "महाराज की जय हो । एक विद्वान् आप को मिलना चाहता है। कहता है, कि मैं नैमित्तिक हूँ, एक महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी करने आया हूँ। महाराज की अनुज्ञा से नैमित्तिक का आगमन हुआ । सम्मान के साथ उसे उचित आसन दिया गया । राजाने भविष्यवाणी के बारे में प्रश्न किया । विद्वान के मुख पर गंभीरता छा गयी । भविष्यवाणी सुनने के लिये सभा उत्सुक तो थी ही, विद्वान की गंभीरता को देखकर वह उत्सुकता और भी अधिक हो गयी। विद्वान ने कहा, 'राजन् ! कहने में संकोच हो रहा है, कहने पर शायद आप को विश्वास भी नहीं होगा, तथापि मेरा कर्तव्य समज कर कहने आया हूँ। आज से साँतवे दिन समंदर में भयानक ख़ूफान आयेगा, उसका पानी आँसमां को स्पर्श करेगा...और उस ख़ूफान में सारी दुनिया डुब जायेगी। केवल जल ही जल...और कुछ भी नहीं बचेगा ।"
राजसभा में सन्नाटा छा गया। मंत्रीश्वरने राजा के कान में कुछ कहा और राजाने आदेश दिया, “पंडितजी ! सात दिन तक आप को हमारी नज़रकेद में रहना होगा। रोज राजसभा में उपस्थित होना होगा । और यदि साँतवे दिन आप की भविष्यवाणी के अनुसार नहीं हुआ, तो आप को मृत्युदंड दिया जायेगा ।" विद्वानने पूर्ण स्वस्थता के साथ कहा, "मुझे मंजूर है, यतः मुझे मेरे ज्ञान पर पूर्ण विश्वास है । जो होनेवाला है, वह होकर रहेगा।"
आज से साँतवे दिन | साँतवे दिन राजसभा में लोगों की भीड़ अपूर्व समंदर में ऐसा तँफान | थी। सब दिल थाम कर बैठे है। सब के चहेरे पर
चिंता भी है और कतहल भी । स्वस्थ है केवल वह आयेगा, जिसमें सारी
विद्वान । राजाने प्रवेश किया । विद्वान ने गंभीर स्वर दुनिया डुब जायेगी।
से कहा, "राजन् ! देखिये, सृष्टि के इतिहास में कभी भी नही हुई, ऐसी घटना का प्रारंभ हो गया है। देखो, समंदर का ख़ूफान आ रहा है...गाँव