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आर्षविश्व
आचार्य कल्याणबोधि आहार मीमांसा
विश्व के धर्मों की दृष्टि में विश्व के सर्व धर्मोंने जीवमात्र में परमात्मा की झलक देखने को कहा है एवं अहिंसा का परम धर्म के रूप में स्वीकार किया है। आहार के लिये भी किसी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिये, इस बात पर सर्व धर्म एकमत है। अधिकांश धर्मो ने तो विस्तारपूर्वक मांसाहार के दोष बतायें है और कहा है कि मांसभक्षण से आयुष्य का क्षय होता है एवं पतन होता है। यदि कोई भी व्यक्ति ऐसा मानती है कि मेरे धर्म में मांसाहार का निषेध नहीं है, तो वह उसका भ्रम है । चलों देखें, कि आहारामीमांसा के विषय में विभिन्न धर्मदृष्टियाँ क्याँ कहती है ?
___ (१) हिन्दु धर्म - सर्व जीव ईश्वर के ही अंश है। अहिंसा, दया, प्रेम, क्षमा आदि गुण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । मांसाहार अत्यंत त्याज्य है व दोषपूर्ण है । मांसाहार करने से आयुष्य का क्षय होता है । अथर्ववेद (८-६-२३) में कहा है -
य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये कविः ।
गर्भान् खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि ॥ जो कच्चा या पक्का मांस खाते है, जो अण्डें खातें है, उनका यहाँ से हम नाश करते है। ऋग्वेद में भी शाकाहार को सर्वोत्तम तथा मांसाहार को घृणित आहार निरूपित किया गया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा है, कि मांस खानेवाले, मांस का व्यापार करनेवाले व मांस के लिये जीवहत्या करनेवाले - तीनों दोषी है। मांसाहारी जहा कहीं भी जन्म लेता है, वह चैन से नहीं रह पाता । मां स भक्षयिताऽमुत्र - ‘मांस' का अर्थ है - जिसका मांस मैं खा रहा हूँ, वह परलोक में मुझे खायेगा।
भगवद्गीता में कहा है कि मांसाहार कुसंस्कारों की ओर ले जाता है, बुद्धि को भ्रष्ट करता है, रोग व आलस्य आदि दुर्गुण देता है।
जो कच्चा या पक्का मांस खाते है, जो अण्डें खाते है, उनका हम | यहां से नाश करते है। - अथर्ववेद
(२) ईसाई धर्म - ईसा मसीह को जान दिबैपटिस्ट से ज्ञान प्राप्त हुआ था, जो
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