Book Title: Arsh Vishva
Author(s): Priyam
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 92
________________ तो सरकार अवश्य जागृत होगी । समज़दार अध्यापक, विचक्षण आचार्य एवं हितेच्छु मातापिता अल्प ही समय में समग्र देश का नवनिर्माण कर सकते है । धर्मोपनिषद् भारत की स्वर्णिम प्राच्य समृद्धि है | आर्षदृष्टा महापुरुषों का यह अणमोल उपहार है | समाज को स्वस्थ व तंदुरस्त बनाने के लिये यह आरोग्य - टोनिक है। संस्कारों की सुवास का प्रसारण करनेवाला यह परम पुष्प है। जीवन में पैसों से नहीं, गुणों से सुख मिलता है, आज भी विश्व में धनवान नहीं, किन्तु गुणवान ही सुखी है । धर्मोपनिषद् गुणों का प्रसार करने के लिये एक अच्छा माध्यम बन सकता है। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् - जो बर्ताव अपने आपको प्रतिकूल है, ऐसा बर्ताव दुसरों के प्रति मत करों यह एक सुवाक्य हज़ारो हत्याओं को रोक सकता I न पापं प्रति पापः स्यात्, साधुरेव सदा भवेत् - दुर्जन के प्रति भी दुर्जन न होना, पर हमेशा सज्जन ही रहना यह एक सुनीति समाज में प्रेम व शांति का प्रसारण कर सकती है । - सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् बोलना, सच भी ऐसा मत बोलना, जिससे किसी को दुःख हो झगड़ों से व विवादो से बचा सकता I मा हिंसीस्तन्वी प्रजाः - समस्त पर्यावरण को सुरक्षित कर सकता है । - सच बोलना, प्रियवचन यह एक सुभाषित अनेक किसी भी जीव की हिंसा मत करो - ९२ यह एक सुवचन अहिंसा परमो धर्मः - अहिंसा ही परम धर्म है - यह एक सुभाषित पक्षीय हुल्लड़ो व तूफानों को रोक सकता है । लोभः सर्वार्थबाधकः - लोभ सभी सिद्धिओ में बाधक है - यह एक सुवर्णवाक्य भ्रष्टाचार को समाप्त कर सकता है । भुङ्क्ते स केवलं पापं भुङ्क्ते यो ह्यतिथिं विना - वह केवल पाप ही खा रहा है, कि जो अतिथि के बिना भोजन कर रहा है यह एक सुवचन देशप्रेम व भ्रातृभाव को जीवंत रख सकता है । मातृवत् परदाराणि, परद्रव्याणि लोष्ठवत् - परनारी को माता के समान देखना व परधन को धूल के समान देखना - यह एक सुभाषित व्यभिचारों, अत्याचारों एवं चोरीयों

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