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ट्रीटमेन्ट चली । जान बच गई। छह दिन के बाद चहरे पर की पट्टी खुली, और युवक हक्का बक्का रह गया । काँच के टुकडों ने पत्नी के चहरे को बेहद बदसूरत बना दिया था। युवक सीधा बाहर निकल गया। डॉक्टर की केबिन में जाकर कह दिया, "जो लेना हो, ले लेना... उसे झहर का इंजेक्शन देकर खतम कर दो ।"
रागी केवल उपरी भाग को देखता है, विरागी आरपार देखता है ।
'लव' करनेवाला भी राग है, चिंता व शंका करने वाला भी राग है । हसनेवाला और रोनेवाला भी राग है । खतम कर देनेवाला भी राग है और अन्य रूप की शोध करनेवाला भी राग है | परम सत्य यह है, कि जहा राग है, वहा सुख की कोई संभावना नहीं है । आगमवचन है- एविंदियत्था य मणस्स अत्था दुक्खस्स हेऊ मणुयस्स रागिणो । अध्यात्मोपनिषद् के तत्त्व का अब साक्षात्कार होता है - वासनानुदयो भोग्ये वैराग्यस्य तदावधिः | जो भीतर में पूर्ण है, उसे बाहर सब कुछ शून्य दिखता है । और शून्य के प्रति वासना जगे, यह संभव ही नहीं। युवक के पास आंतरिक पूर्णता नहीं थी, इसी लिये वह दु:खी हो गया । अज्ञानी की दृष्टि में वह तब ही दुःखी था, जब रो रो कर उसकी आँखो में सूजन आ गयी थी । ज्ञानी की दृष्टि में वह तब भी दुःखी था, जब वह पत्नी के साथ विलास कर रहा था । राग = दुःख | विराग = सुख । कितना दिव्य है अध्यात्मोपनिषद् का वचन यः सदानन्दमश्नुते ।
जो भीतर में पूर्ण है, उसे बाहर सब कुछ शून्य दिखता है ।
भीतर की शून्यता ही जीव को बाहर दौड़ाती है। किन्तु जो भीतर में शून्य है, उसे दुनिया की कोई चीज भर नहीं सकती ।
कौआ खुद काला है, तो चूने का कितना भी रंग उसे सफेद नहीं कर सकता । हाँ, उससे कौए को ऐसा भ्रम हो सकता है, कि मैं सफेद हो गया । पर भ्रम तो भ्रम ही है और वास्तविकता वास्तविकता है । कही पढ़ा था
हमारी जिंदगी का यह, सरल सीधा परिचय है । रुदन में वास्तविकता है, हंसने में अभिनय है ॥
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