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साकार हुआ है वह संत ‘स्थितप्रज्ञ' है । वह संत सदा आनंद में मग्न रहते है ।
__ शुक्ल यजुर्वेद से संबंधित ग्रंथ है अध्यात्मोपनिषद् । जिसकी रचना अज्ञात पूर्व महर्षिने की है। संस्कृत भाषा में अनुष्टुप् छंद में रचित इस ग्रंथ में ८१ श्लोक है। पूर्व महर्षिने इस ग्रन्थ में अध्यात्म का अनुपम अमृत प्रस्तुत किया है....वासनानुदयो भोग्ये....
अनुपस्थित भोग्य की भी तृष्णा यह रागी का लक्षण है, उपस्थित भोग्य के प्रति भी उपेक्षा यह विरागी का लक्षण है। मनुष्य में से राग दूर हो जाये, तो भगवान बाकी रहते है । इसी लिये विरागी को भगवानतुल्य कहा गया है -
नीरख कर नवयौवना, लेश न विषय निदान ।
माने काष्ठ की पुतली, वह भगवान समान ॥ रागी केवल उपरी भाग को देखता है । विरागी आरपार देखता है । रागी केवल वर्तमान को देखता है । विरागी तीनों काल को देखता है । रागी का दर्शन अपूर्ण है । विरागी का दर्शन पूर्ण है । रागी को रूपवती युवती पर राग है एवं कुरूप वृद्धा पर द्वेष है। विरागी को उन दोनों के प्रति समभाव है । विरागी समजता है, कि उनमें से किसी पर भी राग करने जैसा नहीं है, यतः दोनों का शरीर अशचि है। तथा उनमें से किसी पर भी द्वेष करने जैसा नहीं है, यतः दोनों की आत्मा परम पवित्र है...वैराग्यस्य तदावधिः ।
___ एक श्रीमंत के पुत्रने अत्यंत रूपवती कन्या के साथ लव-मेरेज किया । वह घर से बाहर जाता, तो भी पत्नी के ही खयालों में खो जाता । जहा भी देखे वहा वह ही दिखाई देती । वह पास में न हो, तब उसकी चिंता सताया करती । घर पर आठ-दस फोन न करें, तब तक उसे चैन नहीं आता था । घर में वापस आकर वह पत्नी का मोबाईल चेक कर लेता था । शादी को अभी एक ही साल हुआ था, कि उसकी पत्नी
का कार-एक्सीडेन्ट हुआ । समाचार मिले और मानों उस युवक के सिर पर बिजली गिरी । आई.सी.यु. के बाहर रो रो कर उसकी आँखों में सूजन आ गई । जूते की आवाज़
आई और उसने उपर देखा । डॉक्टर को देखते ही वह उसके पावों में गिर गया...प्लीज, सेव माय वाइफ...डॉ. साहब ! जो लेना हो ले लेना...मगर...मैं उसके बिना जी नहीं पाउंगा...प्लीज... डॉक्टरने आश्वासन दिया ।
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