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विश्व
आचार्य कल्याणबोधि
कथा... अंतरंग विश्व की
( उपमिति - १००८ साल प्राचीन एक अनुपम कथा )
एक ऐसा माध्यम, जो सहज उत्सुकता को जन्म दे, आबालवृद्ध सर्व के रस का विषय बने, उस का नाम है कथा । अत एव अनादि काल से कथा का सातत्यपूर्ण आकर्षण रहा है । चाहे दादी माँ की बाते हो, या सचित्र बालपुस्तक हो, नाटक का रंगमंच हो या चलचित्र का परदा हो, नोवेल बुक हो या रामायण सत्र हो, कथा का साम्राज्य सर्वव्यापी है ।
यहाँ एक ऐसी कथा की बात करनी है, जो उपरोक्त सर्व कथा में व्याप्त है । जीवन की प्रत्येक घटना जिस कथा के साथ संलग्न है । मेरी भी यही कथा है, और आप की भी । जिसने इस कथा को नहीं जाना, उसने कुछ भी नहीं जाना । दुन्यवी उपाधियाँ उस के लिये वास्तव में गौरव नहीं, किन्तु कलंक है ।
जिस कथा में विश्वव्यवस्था एवं विश्वसंचालन का रहस्य विधा से प्रकट हुआ है। हम जिन जिन प्रसंगो से उत्तीर्ण होते है, उस प्रत्येक प्रसंग का जिस कथा में 'पॉस्टमॉर्टम' हुआ है । जिस कथा के परिशीलन के बाद समग्र जगत का आर-पार दर्शन होता है । आत्मा की पारदर्शी दृष्टि के आवरण दूर होते है... परमशांति एवं परमसुख स्वाधीन होते है । विश्वमैत्री की भावना हृदय में प्रतिष्ठित होती है । जीवमात्र में निहित शिवस्वरूप का साक्षात्कार होता है | परम समाधि की स्थिति सहज होती है एवं आत्मा यही जीवन्मुक्ति के परमानंद का अनुभव करती है ।
उस कथा का नाम है उपमिति भव प्रपंच कथा । जिसके लेखक है परम कारुणिक श्रमण श्रीसिद्धर्षि गणि । वि.सं. ९६२ में संस्कृत भाषा में इस कथा का सृजन हुआ है । ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन इस कथा का १००८ वा जन्मदिन आ रहा I जन्मदिन उनका ही मनाने योग्य है, जिसने परोपकार किया हो, विश्व का मंगल किया हो । इस कथा आज तक हजारो श्रोताओ को पारदर्शी दृष्टि का दान करके जीवन्मुक्ति का परमानंद दिया है। संक्लेशो की अग्निवर्षा से मुक्ति दे कर समाधि की सुधावृष्टि का दान दिया है।
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